कोच्चि। केरल उच्च न्यायालय ने राजनयिक बैग के जरिये सोने की तस्करी करने के मामले में मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश को शुक्रवार को करारा झटका देते हुए राज्य पुलिस द्वारा तिरुवनंतपुरम और पलक्कड़ में उनके खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करने संबंधी उनकी याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की आपत्तियां समय-पूर्व हैं और कहा कि यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि प्राथमिकी रद्द करने का आदेश केवल दुर्लभतम मामलों में ही दिया जा सकता है। ये सिद्धांत भजन लाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशेष रूप से निर्धारित किये गये हैं।
न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान ए ए ने आदेश में कहा याचिकाकर्ता की सभी दलीलों और सामग्रियों पर विचार करने के बाद मैं इस बात से संतुष्ट नहीं हूं कि ये ऐसे विषय हैं जो भजन लाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उल्लेखित सात श्रेणियों में से किसी एक के अंतर्गत आते हैं। उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामलों की जांच प्रारंभिक चरण में है हालांकि उसने यह सलाह दी कि याचिकाकर्ता आरोप पत्र दायर होने के बाद इस संबंध में अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
स्वप्ना ने दो महीने पहले अदालत का रुख किया था और अपने हालिया खुलासे के जरिये राज्य में दंगा भड़काने की कथित साजिश रचने के लिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। अपनी याचिका में स्वप्ना ने आरोप लगाया कि उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि पूर्व मंत्री के. टी. जलील की अवैध गतिविधियों के बारे में अदालत को जानकारी देने के बाद उनके (स्वप्ना के) खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी।
स्वप्ना ने सोने की तस्करी सहित संयुक्त अरब अमीरात महावाणिज्य दूतावास में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन उनके परिवार के दो सदस्यों पूर्व मंत्री जलील पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पी श्रीरामकृष्णन मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव एम शिवशंकर और कुछ शीर्ष नौकरशाहों के शामिल होने का भी आरोप लगाया था। अदालत ने स्वप्ना की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि वह एक ऐसी व्यक्ति हैं जिसके पास कुछ आपराधिक कृत्यों में मुख्यमंत्री और सत्तासीन लोगों की भूमिका का संकेत देने वाली सामग्री मौजूद हैं और इसलिए वह गवाह संरक्षण योजना के अनुसार गवाह की परिको पूरा करती हैं।
अदालत ने कहा ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता (स्वप्ना) ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत एक बयान दर्ज कराया था वह भी ऐसे मामले में जहां याचिकाकर्ता खुद एक आरोपी हैं। याचिकाकर्ता के दर्ज बयानों में स्वयं को दोष देने वाली सामग्री भी शामिल है। अदालत ने कहा उन्होंने जिस मामले में खुलासे किये हैं उसमें खुद आरोपी हैं इसलिए किसी भी परिस्थिति में उन्हें गवाह नहीं माना जा सकता।
