बिछड़ते सहयोगी बारी-बारी अब अकेले ही बिहार के चुनावी रण में उतरने की तैयारी

बिछड़ते सहयोगी बारी-बारी अब अकेले ही बिहार के चुनावी रण में उतरने की तैयारी

राजनीति बहते पानी की तरह है। कभी रुकती नहीं। अपनी दिशा खुद ही तय करती है। भारतीय लोकतंत्र दुनिया में सबसे विशाल है और उतना ही गहरा भी है। मगर हमारे देश की राजनीति लोकतंत्र से भी ज्यादा गहरी है और इसमें कब क्या होगा इसका आकंलन करना काफी मुश्किल है। बढ़ते गतिरोध और खटास के बीच राष्ट्रीय फलक पर मजबूत होती भाजपा ने बिहार के दो सियासी दुश्मनों को एक बार फिर से एक चौखट पर लाने का काम कर दिया है। बिहार में सत्ता का सियासी उलटफेर होने जा रहा है। तेजी से बदलते समीकरण के बीच एनडीए से एक और दल का एग्जिट हो गया है और जिसकी वजह से राज्य की सत्ता भी गंवानी पड़ रही है। पंजाब में अकाली दल महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू से जुदा हुई राहें से कई सवाल सियासत में उठने शुरू हो गए हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार का साथ छोड़ना बीजेपी के लिए शुभ संकेत है? 


32 दांतो के बीच में जीभ कैसे रहती होगी। ये बहुत पुरानी कहावत है। जब इंसान बेबसी में काम करता है तो ऐसी कई मिसालें दी जाती है। बिहार के मुख्यमंत्री पीएम मैटेरियल वाले मुख्यमंत्री सुशासन बाबू के उपनाम वाले मुख्यमंत्री बिहार में बहार हो का नारा देने वाली पार्टी के मुख्यमंत्री। नाम- नीतीश कुमार। नीतीश साल 2005 से मुख्यमंत्री रहें वो और जो भी फैसले किए अपनी मर्जी से अपने दम पर किया। चाहे वो सीएम पद छोड़ जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना हो या बीजेपी के लिए डिनर कैंसिल करना। लालू का साथ छोड़ बीजेपी के साथ आ जाना जो भी फैसला करते पूरे दमखम के साथ करते। लेकिन फिर आता है बिहार का 2020 का विधानसभा चुनाव। बिहार में विधानसभा चुनाव हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और जनता दल यूनाइटेड के कम सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकने की बजाय नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनाई। । आज नीतीश 43 विधायकों वाली छोटी पार्टी के अगुवा हैं। उनसे ज्यादा विधायक 74 सीटों की संख्या बीजेपी के पास है। यानी कि जो बड़ा भाई हुआ करता था वो अचानक से छोटा भाई हो गया। नीतीश को सीएम बनाए जाने के बावजूद बीजेपी के कई नेता दबी जुबान से इस बात की तस्दीक करते नजर आ जाते थे कि पार्टी को नीतीश की जगह बीजेपी से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था। बीजेपी में इस बात को लेकर नाराजगी थी। कई अहम मंत्रालय भी जेडीयू के पास चला गया था। पार्टी की राज्य इकाई के कई नेता दबी जबान ये कहते थे कि इससे अच्छा तो वो विपक्ष में रहकर अकेले दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी करें। 


साथ छोड़ते सहयोगी


कर्नाटक का विधानसभा चुनाव जब सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी की बजाए कुमारस्वामी ने कांग्रेस की मदद से राज्य में सरकार बना ली। बीजेपी वेट एंड वॉक की भूमिका में रही। आखिरकार विष पीने वाले कुमारस्वामी ने इस्तीफा दिया और फिर बीजेपी सत्ता में आ गई। महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम तो सभी को पता ही है। शिवसेना का साथ मिलकर चुनाव लड़ना फिर सीएम की कुर्सी को लेकर अड़ जाना। एनसीपी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना। पार्टी में ही फूट के बाद सत्ता के साथ पार्टी में भी कमजोर हो जाना। साल 1996 में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुई अकाली दल ने कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन के साथ ही एनडीए से नाता तोड़ लिया। बीजेपी और अकाली दल अकेले ही चुनावी मैदान में उतरे। बीजेपी के पास जहां गंवाने के लिए कुछ भी नहीं था। वहीं अकाली का हाल तो ऐसा हो गया कि दिग्गज नेता प्रकाश सिंह बादल तक अपना हार गए।


सत्ता गंवा विपक्ष में बैठना रहेगा कितना फायदेमंद


ताजा घटनाक्रमों के बाद माना जा रहा है कि बीजेपी ने राज्य में विपक्ष में बैठने की तैयारी कर ली है। बीजेपी के नेताओं का मानना है कि विपक्ष में बैठना पार्टी के लिए ही फायदेमंद रहेगा। बीजेपी के सूत्रों की माने तो पार्टी काडर पूरी ताकत के साथ जनता के बीच जाने की तैयारी में है। इसको लेकर बीते दिनों पटना में हुई बैठक में 200 सीटें के रोडमैप का खाका खींचे जाने की बात से भी समझा जा सकता है। बीजेपी की तरफ से गठबंधन को कायम रखने के लिए कई तरह के समझौते किए जाने की बात भी सामने आई। जिसकी बानगी बीते दिनों अमित शाह के बयान से भी निकाला जा सकता है। जब उन्होंने नीतीश के साथ 2024 और 2025 में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की बात कहकर उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर भी स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की थी। लेकिन अब बीजेपी अपने प्लान बी पर काम करना शुरू कर देगी। यानी नीतीश के एक्शन के बाद अब बीजेपी भी अपने पत्ते खोलने लगेगी। कहा जा रहा है कि मौजूदा सरकार की कुछ योजनाओं के कारण उन्हें जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। गठबंधन अगर टूटता है तो वो अब खुलकर अपनी बात रख पाएंगे। वहीं नीतीश की पाला बदलने की शैली को भी बीजेपी की तरफ से एक्सपोज करने की कोशिश होगी। इसके साथ ही बीजेपी कास्ट कंबिनेशन के जरिये नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर काम पहले ही शुरू कर चुकी है। 

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