नयी दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने उच्चतम न्यायालय की आलोचना के लिए सोमवार को राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह पूरे देश के लिए बहुत दुखद है कि जब विपक्षी नेताओं के पक्ष में फैसला नहीं आता तो वे संवैधानिक प्राधिकारों पर हमला करना शुरू कर देते हैं। वहीं ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) ने सिब्बल के बयान को अवमाननापूर्ण बताया है।
पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) समेत न्यायालय के हाल के फैसलों को लेकर शनिवार को एक कार्यक्रम में आलोचना करते हुए कहा कि वह शीर्ष अदालत में वकील के तौर पर 50 साल पूरे करने जा रहे हैं और पांच दशक के बाद उन्हें संस्थान से कोई उम्मीद नहीं बची है। सिब्बल ने कहा यह भ्रम है कि आपको उच्चतम न्यायालय में समाधान मिलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि उच्चतम न्यायालय में संवेदनशील मामलों को अब कुछ चुनिंदा न्यायाधीशों और कानूनी बिरादरी को सौंपा जा रहा है व आमतौर पर पता होता है कि फैसला क्या होगा।
सोमवार को दो वकीलों ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के पास अलग-अलग अर्जी दायर की जिसमें सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए उनकी सहमति मांगी गई। जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सूचना और प्रौद्योगिकी शाखा के प्रमुख अमित मालवीय ने शीर्ष अदालत से सवाल किया कि प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों और उच्चतम न्यायालय के अन्य फैसलों पर सवाल उठाने के लिए क्या वह पूर्व कांग्रेस नेता के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करेगी।
सिब्बल ने कथित तौर पर कहा कि कोई उच्चतम न्यायालय पर कैसे भरोसा कर सकता है जब वह ऐसे कानून बरकरार रखता है। उन्होंने यह बात पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों को बरकरार रखे जाने के संदर्भ में कही। न्यायालय के इस फैसले की विपक्षी दलों ने आलोचना की थी। रीजीजू ने संवाददाताओं से कहा कि जब भी अदालतें उनकी (सिब्बल और अन्य विपक्षी नेताओं) सोच के विपरीत कोई आदेश या फैसला देती हैं तो वो संवैधानिक प्राधिकारियों पर हमला करना शुरू कर देते हैं।
भाजपा नेता ने कहा कि यह समूचे देश के लिए बेहद दुखद है कि प्रमुख नेता और दल उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालयों निर्वाचन आयोग व अन्य महत्वपूर्ण एजेंसियों की निंदा कर रहे हैं। रीजीजू ने कहा हमारी सरकार के दिमाग में यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि देश संवैधानिक शुचिता और कानून के शासन से शासित होना चाहिए। संवैधानिक प्राधिकारियों और अदालतों पर कोई भी हमला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व निंदनीय है।
मालवीय ने ट्वीट किया कपिल सिब्बल के बारे में व्यापक रूप से माना जाता है कि वह शीर्ष अदालत में मामलों का प्रबंधन करने वाले एक कॉकस की अध्यक्षता करते हैं। उन्होंने पीएमएलए पर उच्चतम न्यायालय के ताजा फैसले पर सवाल उठाया है। यह वही कानून है जिस पर उन्होंने यूपीए में मंत्री के रूप में हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों और उच्चतम न्यायालय के अन्य फैसलों पर सवाल उठाया है। क्या उच्चतम न्यायालय अवमानना कार्यवाही करेगा?
एआईबीए के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता आदिश सी अग्रवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अदालतें मामलों में फैसले उनके सामने प्रस्तुत किए गए तथ्यों के आधार पर तय करती हैं और वे संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं। अग्रवाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि एक मजबूत प्रणाली भावनाओं से मुक्त होती है और केवल कानून से प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि यह एक चलन बन गया है कि जब किसी के खिलाफ मामला जाता है तो वह व्यक्ति सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों की निंदा करना शुरू कर देता है कि न्यायाधीश पक्षपाती हैं या न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है।
अग्रवाल ने कहा यह पूरी तरह से अवमाननापूर्ण है और कपिल सिब्बल जो सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे उनका यह रुख दुर्भाग्यपूर्ण है। बहरहाल दो वकीलों-विनीत जिंदल और शशांक शेखर झा ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को अलग-अलग पत्र लिखकर सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति देने का अनुरोध किया है। झा ने अपने पत्र में कहा निंदात्मक भाषण न केवल उच्चतम न्यायालय और उसके न्यायाधीशों के खिलाफ है बल्कि उच्चतम न्यायालय और उसके न्यायाधीशों दोनों के अधिकार को बदनाम करके शीर्ष अदालत की गरिमा और स्वतंत्र प्रकृति को कमजोर करने की प्रक्रिया है।
इसी तरह जिंदल ने दावा किया है कि सिब्बल के बयानों ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पारित निर्णयों की निंदा की है। उन्होंने अपने पत्र में कहा अगर इस तरह के चलन को अनुमति दी गई तो नेता हमारे देश के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बेरोक-टोक आरोप लगाना शुरू कर देंगे और यह प्रवृत्ति जल्द ही एक स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली की विफलता का कारण बनेगी।
