भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से महापौर की पांच सीट छीनकर और दो सीटें मामूली अंतर से हारने के बावजूद यह साफ संकेत दे दिया है कि प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में है। मध्य प्रदेश में हाल में संपन्न हुए 16 नगर निगमों के चुनाव परिणाम भाजपा खेमे में खतरे की घंटी बजा सकते हैं। वैसे भी कांग्रेस ने 15 साल बाद 2018 में पिछला विधानसभा चुनाव जीत कर प्रदेश में अपनी सरकार बना ली थी। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी। सिंधिया के गृह नगर ग्वालियर में महापौर पद का चुनाव जीतकर कांग्रेस ने इस बार बड़ा संकेत दिया है। मध्य प्रदेश में 16 महापौर के चुनाव में कांग्रेस ने पांच भाजपा ने नौ आम आदमी पार्टी ने एक और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की।
हालांकि इस चुनाव में भाजपा ने अधिक सीटें जीती हैं जबकि 2015 के पिछले महापौर चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी। पिछले साल हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने खंडवा लोकसभा सीट बरकरार रखी थी तथा जोबट और पृथ्वीपुर विधानसभा सीटें भाजपा ने कांग्रेस से छीन ली थीं। महापौर चुनाव में कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री सिंधिया के गृह नगर ग्वालियर में जीतकर बड़ा उलटफेर किया है। सिंधिया और उनके समर्थकों ने 2020 में भाजपा में शामिल होकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिरा दिया था। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ मुरैना में भी कांग्रेस ने महापौर सीट जीत ली है जिसे काफी अहम माना जा रहा है। जबलपुर में 1996 से लोकसभा चुनाव जीत रही भाजपा को एक झटका तब लगा जब वहां कांग्रेस ने 18 साल बाद महापौर पद पर कब्जा किया है। जबलपुर में भाजपा के लिए हार अधिक कड़वी रही क्योंकि उसने महापौर पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारक माने जाने वाले डॉ जितेंद्र जामदार को मैदान में उतारा था।
इसी तरह रीवा शहर को भी 24 साल बाद कांग्रेस का महापौर मिला है। छिंदवाड़ा में भी कांग्रेस जीती हालांकि यह शहर हमेशा से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का गढ़ रहा है। बुरहानपुर महापौर की सीट पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। एआईएमआईएम के प्रत्याशी ने दस हजार से अधिक वोट हासिल किए और कांग्रेस की शहनाज इस्माइल भाजपा की माधुरी पटेल से केवल 542 मतों के मामूली अंतर से हार गईं। कमलनाथ ने आरोप लगाया है कि एआईएमआईएम ने भाजपा की बी टीम के रुप में काम किया। वहीं उज्जैन में भी कांग्रेस का उम्मीदवार केवल 736 मतों के अंतर से चुनाव हार गया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार कांग्रेस भाजपा के गढ़ों में पैठ बना सकती है क्योंकि कमलनाथ ने एक सर्वेक्षण के आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया था। पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा खेमे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश भाजपा प्रमुख वी डी शर्मा सिंधिया तोमर कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा सहित कई प्रमुख नेता उम्मीदवार चयन प्रक्रिया का हिस्सा थे जिसने पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित किया। सिंगरौली में भाजपा से आप में शामिल हुईं रानी अग्रवाल ने महापौर पद जीतकर सबको चौंका दिया। मध्य प्रदेश में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी की नगर निकाय चुनाव में यह पहली जीत है।
वहीं कटनी महापौर पद पर भाजपा से बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरीं प्रीति सूरी ने शानदार जीत दर्ज की। फिर भी अधिकांश निगमों नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में भाजपा अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सफल रही। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल ग्रामीण इलाकों में अधिकांश पार्षद पदों के साथ-साथ पंचायत सदस्यों के अधिकांश पदों पर जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं। भाजपा अभी भी शहरी और उपनगरीय इलाकों में मुख्य पद पर है। जबलपुर ग्वालियर और रीवा में जहां कांग्रेस ने महापौर पद जीता इन नगर निगमों में भी अधिकांश पार्षद भाजपा से हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि भाजपा ने लगभग 400 शहरी और अर्ध शहरी निकायों में से लगभग 300 में बहुमत हासिल करने का अनुमान लगाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा हमेशा शहरों और कस्बों में मजबूत रही है। हालांकि पार्टी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि 2018 में वह कांग्रेस के 114 के मुकाबले 107 विधानसभा सीटें जीती थी। कांग्रेस ग्रामीण इलाकों से अपनी ताकत लेती है जोकि प्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 165-170 विधायक भेजते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राज्य के निकाय चुनावों में पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली आप और एआईएमआईएम आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
