न्याय के नए नायक! जस्टिस सूर्यकांत बने देश के अगले मुख्य न्यायाधीश, 24 नवंबर से नई जिम्मेदारी

न्याय के नए नायक! जस्टिस सूर्यकांत बने देश के अगले मुख्य न्यायाधीश, 24 नवंबर से नई जिम्मेदारी

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किया है। न्यायमूर्ति कांत 23 नवंबर को सीजेआई भूषण रामकृष्ण गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद पदभार ग्रहण करेंगे। वह देश के 53वें सीजेआई होंगे और 9 फरवरी, 2027 तक 15 महीने तक इस पद पर बने रहेंगे। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक पोस्ट में कहा कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री न्यायमूर्ति सूर्यकांत को 24 नवंबर, 2025 से भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करते हुए प्रसन्न हैं। मैं उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

10 फ़रवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। वे उन पीठों का हिस्सा रहे हैं जिन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता पर कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस ऐतिहासिक पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था और निर्देश दिया था कि सरकार की समीक्षा तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न की जाए। उन्होंने चुनाव आयोग से बिहार में 65 लाख बहिष्कृत मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक करने का आग्रह किया, जिससे चुनावी पारदर्शिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्देश देकर भी इतिहास रचा।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ​​की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति गठित की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों में "न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग" की आवश्यकता होती है। उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा और सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों की स्थायी कमीशन में समानता की माँग वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।


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