अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आसियान बैठक के बहाने हुई मुलाकात में मुख्यतः व्यापारिक तनाव को कम करने और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने पर गम्भीरता पूर्वक चर्चा हुई। बताया जाता है कि दोनों देशों ने टैरिफ, निर्यात नियंत्रण, कृषि उत्पादों के व्यापार, और फेंटेनाइल तस्करी जैसे अहम मसलों पर बातचीत की। खास बात यह रही कि बातचीत के दौरान अमेरिका ने चीन पर फेंटेनाइल की तस्करी का आरोप लगाया, जिसे ट्रंप ने अपनी बातचीत का मुख्य मुद्दा बनाया।
इसके अलावा, रूस से तेल खरीद, अमेरिकी किसानों से आयात, व्यापार असंतुलन जैसे विषय भी बैठक में उठाए गए। यही वजह है कि दोनों देशों ने व्यापार युद्ध को खत्म करने और वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए बुनियादी सहमति पर पहुंचने की कोशिश की है। गौरतलब है कि दोनों देशों ने ही मुलाकात की पुष्टि की है, और यह माना जा रहा है कि संबंधों में सुधार की दिशा में यह एक सकारात्मक कदम है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के मुताबिक, जहां ट्रंप ने आने वाली पहली बातचीत में फेंटेनाइल मुद्दा उठाने की बात कही है, वहीं शी जिनपिंग ने भी वार्ता को रचनात्मक बताया। अगली मुलाकात आगामी 30 अक्टूबर को साउथ कोरिया के बुसान में होगी, जहां एपीईसी सम्मेलन भी आयोजित हो रहा है। इस बैठक में ताइवान और हांगकांग जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है, जिसमें ट्रंप ने लोकतंत्र समर्थक नेता जिमी लाई की रिहाई का मुद्दा उठाने की बात कही है।
कुल मिलाकर, यह मुलाकात अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक और राजनीतिक तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है जो वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। वहीं, ट्रंप और शी जिनपिंग की आसियान बैठक में हुए व्यापार समझौते के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:-
पहला, व्यापार युद्ध विराम विस्तार: दोनों देशों ने व्यापार युद्ध विराम समझौते को विस्तारित करने पर सहमति बनाई, जिससे व्यापारिक तनाव कम होगा।
दूसरा, टैरिफ वार टालना: अमेरिका ने 1 नवंबर से चीन पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी की थी, जिसे समझौते के तहत टाला गया। चीन ने अमेरिकी टैरिफ और निर्यात प्रतिबंधों पर सौहार्दपूर्ण वार्ता की सहमति दी।
तीसरा, फेंटेनाइल नियंत्रण: व्यापार के अलावा, फेंटेनाइल तस्करी के मुद्दे पर भी चर्चा हुई, जिसे अमेरिकी पक्ष ने गंभीरता से उठाया।
चतुर्थ, निर्यात नियंत्रण: चीन के रेयर अर्थ मिनरल्स और अन्य प्रमुख विनिर्माण इनपुट पर निर्यात नियंत्रण पर बातचीत हुई, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला स्थिर रह सके।
चम, कृषि एवं तेल आयात: अमेरिकी किसानों से फसल खरीद और रूस से तेल खरीद को लेकर भी बहस हुई, जो दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद करेगी।
षष्टम, वैश्विक आर्थिक स्थिरता: दोनों नेताओं ने वैश्विक बाजारों में स्थिरता बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई।
समझा जाता है कि इस समझौते से अमेरिका-चीन के व्यापारिक विवादों में कमी आने और वैश्विक आर्थिक दुष्प्रभावों को कम करने की उम्मीद है। इसप्रकार से यह बैठक रणनीतिक आर्थिक सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, ट्रंप और शी जिनपिंग ने टैरिफ और निर्यात नियंत्रण पर महत्वपूर्ण बातें कही हैं। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने बताया कि अमेरिका ने चीन पर 100 प्रतिष्ठित टैरिफ लगाने की योजना को अब टाल दिया है, जिससे बड़े टैरिफ युद्ध की आशंका कम हो गई है। दोनों देशों ने चीन की दुर्लभ पृथ्वी (Rare Earth) मृदा पदार्थों के निर्यात नियंत्रण को कुछ समय के लिए स्थगित करने पर सहमति जताई है। इस समझौते को लेकर दोनों पक्षों की बातचीत को "रचनात्मक और गहन" बताया गया है।
वहीं, चीन ने भी यह खुलकर माना है कि निर्यात नियंत्रण को लेकर प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन में स्थिरता बनी रहे। इस कदम से व्यापार में संतुलन आएगा और दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा। इसके साथ ही, व्यापार युद्ध को खत्म कर आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है।
बता दें कि इस सबके पीछे प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा 1 नवंबर से नए 100 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने की धमकी थी, जिसे चर्चा के बाद टाला गया। दोनों नेताओं की मुलाकात में इन मुद्दों को लेकर गंभीर और सकारात्मक बातचीत हुई है, जिससे व्यापारिक संबंध बेहतर हो सकेंगे।
इसलिए, टैरिफ टालने और निर्यात नियंत्रण पर सहमति ने आगामी व्यापारीय विवादों को कम करने का मार्ग प्रशस्त किया है और एक संतुलित, स्थिर व्यापारिक वातावरण बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
इन बातों से स्पष्ट है कि ट्रंप और जिनपिंग की मुलाकात के वैश्विक मायने बड़े और कई पक्षों से देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर यह बैठक अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रहे व्यापारिक तनाव, विशेषकर टैरिफ विवाद पर समाधान की उम्मीद जगाती है। बताया जाता है कि आगामी 30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया में दोनों देश के नेता मिलेंगे और अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए 155 प्रतिशत से अधिक टैरिफ के मुद्दे पर बातचीत करेंगे, जिससे वैश्विक व्यापार में स्थिरता आ सकती है।
इसके अलावा, इस मुलाकात में ताइवान की स्थिति, यूक्रेन युद्ध, और फेंटेनाइल की तस्करी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी चर्चा होगी। ट्रंप ने कहा है कि उनका उद्देश्य किसानों के हितों का संरक्षण करते हुए दोनों देशों के बीच व्यावहारिक और पूर्ण समझौता करना है। कहना न होगा कि यदि यह वार्ता सफल होती है, तो इससे न केवल अमेरिका और चीन के द्विपक्षीय संबंध सुधरेंगे, बल्कि वैश्विक बाजारों में भी स्थिरता आएगी और ब्रिक्स देशों जैसे विकासशील देशों की स्थिति पर असर पड़ेगा। कुलमिलाकर यह मुलाकात एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
संक्षेप में यदि कहा जाए तो, ट्रंप-जिनपिंग की मुलाकात विश्व के दो प्रमुख शक्तिशाली राष्ट्रों के बीच आर्थिक, कूटनीतिक और क्षेत्रीय स्थिरता हेतु निर्णायक क्षण है, जिसका प्रभाव वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा होगा। ट्रंप-जिनपिंग की मुलाकात के संदर्भ में ताइवान नीति पर संभावित बदलावों के संकेत कुछ मुख्य बिंदुओं से समझे जा सकते हैं:-
पहला, अमेरिका ने हाल ही में ताइवान को लेकर अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भाषा में बदलाव किए, जिससे चीन नाराज हुआ। अमेरिका का कहना है कि वह ताइवान में शांति और स्थिरता का समर्थन करता है और किसी भी एकतरफा बदलाव का विरोध करता है, लेकिन चीन इसे अमेरिका की गलत नीति मानता है। यह संकेत देता है कि अमेरिका ताइवान के साथ अपने अनौपचारिक संबंधों को जारी रखेगा पर चुनौतीपूर्ण स्थिति बनी रहेगी।
दूसरा, ट्रंप प्रशासन ने अपने सहयोगी देशों से पूछा है कि यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो उनका क्या रुख होगा। इसका मतलब यह है कि अमेरिका संभावित सैन्य संघर्ष की स्थिति के लिए बहुपक्षीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है, जो ताइवान के मुद्दे को और अधिक संवेदनशील बना सकता है।
तीसरा, ट्रंप की जिनपिंग से मुलाकात में ताइवान मुद्दे पर बातचीत होने की पुष्टि हुई है, जिसमें ट्रंप ने कहा कि वे ताइवान के लिए सम्मान रखते हैं और इस विषय पर चर्चा करेंगे। यह दर्शाता है कि अमेरिका ताइवान नीति में किसी बड़े बदलाव की संभावना पर विचार कर रहा है, खासकर चीन के साथ तनाव के बीच।
चतुर्थ, भारत ने भी ताइवान पर अपना रुख अभी तक नहीं बदला है। भारत का ताइवान के साथ संबंध मुख्य रूप से आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक क्षेत्रों में है, और वह ‘एक चीन नीति’ के तहत इसका सम्मान करता है। भारत इस मामले में संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाए हुए है। इस प्रकार, ताइवान नीति पर संभावित बदलावों के संकेतों में अमेरिका की सशक्त और बहुपक्षीय रणनीति, चीन की सख्त प्रतिक्रिया, और ट्रंप-जिनपिंग वार्ता के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा प्रमुख हैं। यह स्थिति क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शक्ति संतुलन दोनों के लिए संवेदनशील बनी हुई है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रंप-जिनपिंग की मुलाकात और इसके परिणाम ब्रिक्स देशों और भारत पर कई मायनों में असर डाल सकते हैं। सर्वप्रथम, इस बैठक से व्यापारिक टैरिफ विवादों में राहत मिल सकती है, जिससे ब्रिक्स देशों के आपसी व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। अमेरिका की टैरिफ नीतियों ने ब्रिक्स देशों, खासकर भारत और ब्राजील को प्रभावित किया है, और इसलिए अगर इन टैरिफ विवादों का समाधान होगा तो ब्रिक्स देशों के आर्थिक सहयोग में मजबूती आएगी।
भारत और ब्राजील अब अमेरिकी व्यापारिक दबावों के खिलाफ नए बाजार खोजने और आपसी व्यापार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, जो ‘मेक इन इंडिया’ सहित भारत की तकनीकी और औद्योगिक प्रगति में सहायक होगा। इसके अलावा, ब्रिक्स के नेताओं ने अमेरिकी टैरिफ युद्ध और संरक्षणवाद का विरोध किया है, जो विकासशील देशों के व्यापार और वित्तीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए एकजुट हैं। भारत इस समूह में अपनी भागीदारी बढ़ाकर वैश्विक दक्षिण के प्रतिनिधित्व, बहुपक्षीयता, और वैश्विक शासन सुधार को आगे बढ़ा रहा है।
हालांकि, ट्रंप की ओर से ब्रिक्स को धमकी भी जारी है कि जो सदस्यता लेगा उस पर अतिरिक्त शुल्क लगेगा, जिससे भारत सहित ब्रिक्स देशों को अमेरिकी टैरिफ नीतियों के चाल-चलन पर सतर्क रहना होगा। साथ ही, भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ दूरी आई है, लेकिन भारत ब्रिक्स में मजबूत साझेदारी के दायरे में अपने हितों की रक्षा कर रहा है।
संक्षेप में यदि कहा जाए तो ट्रंप-जिनपिंग बैठक से भारत और ब्रिक्स देशों को टैरिफ विवादों में सुधार, आपसी व्यापार बढ़ाने, आर्थिक और राजनीतिक एकजुटता मजबूत करने का मौका मिलेगा, जो वैश्विक आर्थिक व्यवस्था और भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए सकारात्मक रहेगा। हालांकि, अमेरिका की टैरिफ नीति और कूटनीतिक जटिलताओं के बीच सावधानी भी जरूरी है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि ट्रंप-जिनपिंग बैठक का भारत-चीन व्यापारिक संबंधों पर सकारात्मक असर पड़ने की संभावना है। क्योंकि दोनों देशों के बीच पिछले कुछ समय में तनाव कम हुआ है और सीमा विवाद पर बातचीत ने भी माहौल सुधारा है। भारत व्यापार में चीन से अपने कच्चे माल और अन्य आवश्यक सामग्रियों पर काफी निर्भर है, इसलिए वह टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने पर विचार कर रहा है, जिससे व्यापार सुगम हो सकेगा।
हाल ही में भारत और चीन ने सीमा क्षेत्रों में व्यापार फिर से शुरू करने, सीधी उड़ान सेवाएं बहाल करने और आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति दी है। इसके अलावा, भारत आर्थिक सुधारों के तहत चीन से आयात पर एंटी-डंपिंग शुल्क को कम करने और व्यापारिक बाधाओं को घटाने के कदम उठा रहा है। यह भारत की औद्योगिक विकास और निर्यात विस्तार के लिए फायदेमंद होगा।
वहीं, चीन ने भारत को रेयर अर्थ मिनरल्स जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियां देने की सहमति दी है, जिससे भारत की तकनीकी और रक्षा क्षमताओं को बल मिलेगा, हालांकि कुछ शर्तों के साथ। दोनों देशों की सरकारें व्यापारिक संबंध सुधारने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए सक्रिय हैं।
संक्षेप में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बैठक के बाद भारत-चीन व्यापारिक संबंधों में नरमी आएगी, व्यापार बढ़ेगा, सीमा व्यापार फिर से शुरू होगा और दोनों देशों के बीच आर्थिक भागीदारी मजबूत होगी, जो दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए लाभकारी होगा।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
