भारत के पूर्वी तट पर एक बार फिर प्रकृति की प्रचंड चुनौती मंडरा रही है। बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवात ‘मोंथा’ (Montha) आज सुबह एक गंभीर चक्रवाती तूफान में तब्दील हो गया है। मौसम विभाग (IMD) के अनुसार यह तूफान 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ते हुए आंध्र प्रदेश के काकीनाडा और मछलीपट्टनम के बीच तट से टकरा सकता है। इसका असर ओडिशा, तेलंगाना, झारखंड और तमिलनाडु तक महसूस किया जा सकता है।
इस बीच, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रेलवे विभाग की तैयारियों की समीक्षा की है। उन्होंने विशेष रूप से विजयवाड़ा, विशाखापट्टनम और गुंटूर डिवीज़नों में आवश्यक मशीनरी, सामग्री और मानवबल तैयार रखने के निर्देश दिए हैं। रेलवे ने अपने डिविजनल वार रूम सक्रिय कर दिए हैं ताकि ट्रेन सेवाओं पर चक्रवात के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके। दक्षिण मध्य रेलवे (SCR) और पूर्वी तटीय रेलवे (ECoR) ने कई ट्रेनों को रद्द या पुनर्निर्धारित कर दिया है। यात्रियों को सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है।
हम आपको बता दें कि मौसम विभाग ने ओडिशा के 19 जिलों में रेड अलर्ट और आंध्र प्रदेश के कई जिलों में ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। मलकानगिरी, कोरापुट, गजपति, गंजाम, कालाहांडी जैसे जिलों में भारी वर्षा और भूस्खलन की आशंका के चलते 140 रेस्क्यू टीमों को तैनात किया गया है। वहीं, चेन्नई, एन्नोर और कट्टुपल्ली बंदरगाहों को लोकल वार्निंग सिग्नल नंबर 4 फहराने को कहा गया है।
साथ ही राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) ने राहत और बचाव कार्यों के लिए 45 टीमों को तैयार रखा है, जिनमें से 25 टीमों को पहले से ही आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और पुडुचेरी में तैनात किया गया है। शेष 20 टीमें बैकअप में हैं। अकेले आंध्र प्रदेश में 10 टीमें और ओडिशा में 6 टीमें तैनात की गई हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक ओडिशा सरकार ने लगभग 50,000 लोगों को सुरक्षित स्थलों पर पहुंचाया है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को प्राथमिकता दी गई है। इस बीच, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बताया कि राज्य के 3,778 गाँव भारी वर्षा की चपेट में आ सकते हैं। रेलवे और स्वास्थ्य मंत्रालयों ने अपने-अपने विभागों को अलर्ट पर रखा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने सभी पार्टी कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों से राहत कार्यों में सक्रिय भागीदारी की अपील की है।
देखा जाये तो भारत के तटीय राज्य हर साल प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती से जूझते हैं। लेकिन हर चक्रवात प्रशासनिक तत्परता की परीक्षा बन जाता है। ‘मोंथा’ की रफ्तार और असर चाहे जितना भी गंभीर हो, उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या भारत की आपदा प्रबंधन व्यवस्था स्थायी रूप से सुदृढ़ हो पाई है? वैसे पिछले एक दशक में भारत ने आपदा प्रतिक्रिया के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। NDRF और SDRF की दक्षता, मौसम विभाग की पूर्व चेतावनी प्रणाली और रेलवे-राज्य समन्वय ने नुकसान को काफी हद तक कम किया है। लेकिन फिर भी हर आपदा यह दिखा देती है कि शहरी और ग्रामीण योजना में दीर्घकालिक सोच की कमी है। निचले इलाकों में बस्तियाँ बसाने, जल निकासी की कमजोर व्यवस्था और अवैज्ञानिक तटीय निर्माण कार्य आज भी समस्या बने हुए हैं।
‘मोंथा’ की एक और अहम सीख यह है कि केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय और जनभागीदारी उतनी ही जरूरी है जितनी तकनीकी तैयारी। आपदा राहत केवल सरकारी आदेशों से नहीं चलती— इसके लिए स्थानीय समुदायों, पंचायतों और नागरिक संगठनों को भी सक्रिय भूमिका निभानी होती है।
‘मोंथा’ हमें यह याद दिला रहा है कि जलवायु परिवर्तन अब किसी दूर की संभावना नहीं, बल्कि हमारे दरवाजे पर दस्तक देता हुआ खतरा है। भारतीय उपमहाद्वीप में चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ी हैं। ऐसे में सिर्फ आपात राहत नहीं, बल्कि आपदा पूर्व तैयारी (pre-disaster planning) पर अधिक निवेश जरूरी है। अगर भारत जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं का डटकर सामना करना चाहता है, तो उसे विज्ञान, नीतियों और जनजागरूकता— इन तीनों को एक सूत्र में बाँधना होगा। ‘मोंथा’ की आँधी एक और चेतावनी है कि प्रकृति की भाषा में लापरवाही का कोई अर्थ नहीं होता।
