बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनैतिक पार्टियां जोर-शोर से तैयारियों में जुट गई हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी भी अपने खोए हुए जनाधार को दोबारा लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। इसके लिए राहुल गांधी ने पहले पूरे बिहार में वोटर अधिकार यात्रा की और देश की आजादी के बाद पहली बार राज्य में राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक होने जा रही है। बता दें कि राज्य की राजनीति में कांग्रेस का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी कि आजादी की कहानी।
लेकिन साल 1990 के बाद से राज्य में कांग्रेस का आधार लगातार खिसकता चला गया। कभी पूर्ण बहुमत के साथ बिहार में एकछत्र राज्य करने वाली पार्टी विधानसभा चुनाव में सिमटती चली गई। वर्तमान समय में राज्य में कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिहार में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से खड़ी हो पाएगी।
बिहार में कांग्रेस का सुनहरा दौर
आजादी के बाद से लेकर साल 1990 के दशक तक कांग्रेस का बिहार की राजनीति पर दबदबा रहा है। वहीं साल 1952, 1962 और 1972 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। कांग्रेस पार्टी का मजबूत जनाधार दलित, सवर्ण और मुस्लिम समुदाय पर आधारित था। इस दौरान में कांग्रेस पार्टी ही बिहार की मुख्यधारा की राजनीति थी। पार्टी की केंद्रीय सोच यानी सर्व समाज की सियासत करने वाली पार्टी के रूप में पहचान रखती थी। लेकिन साल 1990 के विधानसभा चुनाव ने राज्य की राजनीति की दिशा ही बदल दी।
लालू यादव बिहार के सीएम बने और कांग्रेस की जड़ों को पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग की राजनीति ने हिलाना शुरूकर दिया। वहीं कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक भी लालू यादव की तरफ चले गए। इसके बाद दलित और सवर्ण वोट भी कांग्रेस से छिटक गए। जानकारों की मानें, तो यह वही दौर था, जब राज्य में कांग्रेस के पतन की शुरूआत हो गई थी।
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साल 1985 में कांग्रेस ने 239 सीटों में से 196 सीटों पर कब्जा जमाकर बहुमत हासिल की।
साल 1990 में कांग्रेस 71 सीटों पर सिमटकर रह गई।
साल 1995 में कांग्रेस सिर्फ 29 सीटों पर ही कब्जा जमा सकी।
साल 2000 में कांग्रेस को सिर्फ 23 सीटें मिली थीं।
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साल 2005 में कांग्रेस पार्टी सिर्फ 10 सीटों पर जीत हासिल कर सकी।
साल 2005 अक्तूबर में पार्टी ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की।
साल 2010 में कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
साल 2015 में गठबंधन के साथ कांग्रेस 27 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी।
साल 2020 में कांग्रेस फिर 19 सीटों पर सिमटकर रह गई।
पुराना जनाधार मिलना मुश्किल
राजनीतिक जानकारों की मानें, तो सिर्फ बैठकों से कांग्रेस का पुराना जनाधार लौटना काफी मुश्किल है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना खोया वोट बैंक वापस पाना है। मुस्लिम समाज पूरी तरह महागठबंधन उसके अपने सहयोगी पार्टी के साथ है। वहीं सवर्ण और दलित वोट भी बंटा है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को नए मुद्दों और युवाओं से सीधे जुड़ाव बनाना होगा। वहीं सही रणनीति के साथ पार्टी बिहार में नई शुरूआत हो सकती है।
