लद्दाख के जेन-जेड क्रांति से सबक सीखे भारत, अन्यथा.....!

लद्दाख के जेन-जेड क्रांति से सबक सीखे भारत, अन्यथा.....!

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर जारी आंदोलन ने गत्वबुधवार को हिंसक रूप अख्तियार कर लिया है। इसके बाद लेह में प्रदर्शनकारी छात्रों की सुरक्षाबलों से झड़प हुई, जिसमें 4 लोगों की मौत हुई और 70 से ज्यादा घायल है। वहीं, प्रदर्शन के दौरान बीजेपी के ऑफिस और सीआरपीएफ की गाड़ी में आग लगा दी गई। चूंकि यह अतिवादी कार्रवाई है। इसलिए हिंसा पर काबू पाने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। वहीं, हालात को देखते हुए लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया। बिना मंजूरी के रैली और प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है।

बताते चलें कि लद्दाख को राज्य का दर्जा समेत कई मांगों पर सोशल ऐक्टिविस्ट सोनम वांगचुक विगत 15 दिनों से भूख हड़ताल पर थे। लिहाजा, उनकी मांगे पूरी न होने पर प्रदर्शनकारियों ने बुधवार को बंद बुलाया। इसी सिलसिले में सोशल मीडिया पर लोगों से लेह हिल काउंसिल पहुंचने की अपील की गई। जिसके बाद गत बुधवार को सैकड़ों की संख्या में आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे। इसी दौरान हिंसा हुई। सरकारी सूत्रों ने कहा कि हिंसा में राजनीति से प्रेरित साजिश की बूआ रही है।

वहीं, केंद्र सरकार ने दो टूक शब्दों में कहा है कि सोनम वांगचुक के उकसाऊ बयानों से यह हिंसा भड़की है। इससे पहले वांगचुक ने हिंसा पर दुख जताते हुए अनशन तोड़ दिया। उन्होंने इन घटनाओं के लिए जेन-जेड (1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाली पीढ़ी) की हताशा को जिम्मेदार ठहराया और शांति की अपील की। उल्लेखनीय है कि प्रदर्शनकारियों की 4 अहम मांगें हैं- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, पूर्वोत्तर की तरह संवैधानिक सुरक्षा, करगिल, लेह की अलग-अलग लोकसभा सीट और सरकारी जॉब्स में में स्थानीय लोगों की भर्ती।

इससे स्पष्ट है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और चीन के हमदर्द राहुल गाँधी जो नेपाल-बंगलादेश की तरह पूरे देश में यही कुछ चाहते थे, के मनोरथ पूर्ण होने की तरफ बात बढ़ चली है। यदि शेष भारत में गृहयुद्ध भड़कता है तो इसके लिए इस देश में केवल विपक्षी दल, कथित सिविल सोसायटी और बाहरी शक्तियाँ, यथा- अमेरिकी डीप स्टेट तथा इस्लामिक अतिवादी संस्थाएं दोषी तो होंगी ही, साथ ही साथ इस बद से बदतर स्थिति के लिए कथित राष्ट्रभक्त हिंदू और सनातन धर्म प्रेमी लोगों का एक बड़ा तबका भी होगा जो उनके इशारे पर थिरकते हैं।

ऐसा इसलिए कि आप लद्दाख की इस घटना से लेकर नेपाल के हाल-फिलहाल के वाक़ये तक इनके द्वारा लिखी व बोली गई अनाप-शनाप बातों से अंदाजा लगा सकते हैं।वास्तव में ये जाने-अनजाने में देश धर्म विरोधी तत्त्वों के हथियार बन रहे हैं। यह गम्भीर बात है। इससे संवैधानिक सफलता भी संदिग्ध हुई है। सच कहूं तो भारत के अतिसंवेदनशील केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से  जेन-जेड क्रांति का जो आगाज दिखाई-सुनाई पड़ा है, यह हमें समय रहते ही सावधान करने के लिए काफी है। यह स्थिति किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है। चाहे सम्बन्धित सेना हो या सिविल व पुलिस प्रशासन, यदि उनके द्वारा अमेरिकी खुफिया इकाई सीआईए द्वारा प्रोत्साहित इस कथित जेड-जेन क्रांति को सख्ती पूर्वक नहीं कुचला गया तो उनका भविष्य भी अंधकारमय हो जाएगा!

बेहतर होगा कि इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों को अविलंब कैद करके उन्हें आजीवन कारावास या फांसी की सजा दी जाए, क्योंकि उनके कुकर्मों से धन-जन की हानि हुई है, अन्यथा भारतीय लोकतंत्र में भी एक गलत ट्रेंड स्थापित हो जाएगा। एशियाई लोकतंत्र की सफलता पर सवाल उठेंगे। ऐसा इसलिए कि पश्चिमी लोकतंत्र खूनी लोकतंत्र है, पक्षपाती डेमोक्रेसी है। जिसका मकसद दुनिया भर में लोकतांत्रिक जनभावना मजबूत करना नहीं, बल्कि अपने आर्थिक व साम्राज्यवादी लाभ के लिए दुनिया में कठपुतली सरकार कायम करना है।

यही वजह है कि जेन-जेड जैसी कथित क्रांति से हो रहे सत्ता परिवर्तन और बन रही कठपुतली सरकारों को दुनियावी लोकतंत्र की सफलता के लिहाज से उचित नहीं समझा जा सकता है। इसलिए लद्दाख घटनाक्रम के बाद भारत को ठोस और प्रभावी कदम उठाने ही होंगे और इससे अपने पड़ोस को भी लाभान्वित करने की सद्भावना रखनी होगी।

कहना न होगा कि 2014 की सनातन युवा क्रांति के बाद बनी भाजपा नीत मोदी सरकार की सफलता से ही भारत, अमेरिका-चीन और अरब देशों के निशाने पर है। इसलिए श्रीलंका, अफगानिस्तान, बंगलादेश, नेपाल आदि में जो जेन-जेड क्रांति हुई, उसका मकसद भारतीय राजनेताओं और सेना के धैर्य की परीक्षा लेना था। जब हम लोकतंत्र की पैरोकारी में मजबूती पूर्वक विफल रहे तो लद्दाख जेन-जेड क्रांति हमें मुबारक कर दिया गया।

सवाल है कि यह भी प्रयोग केरल, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर के बजाय बौद्ध धर्म बहुल लद्दाख में करवाया गया ताकि बौद्धों के प्रति हिंदुओं के मन में नफरत पैदा हो और चीन-भारत व तिब्बत-भारत के रिश्तों में पलीता लगे। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश, नेपाल में लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ होता तो बेहतर होता। लेकिन चरमपंथियों और हिंसकों को कुचलने के बजाय स्थानीय सेना व प्रशासन द्वारा ऐसे अराजक तत्वों से बात करने से समकालीन लोकतंत्र के प्रति गलत संदेश गया है।

लिहाजा, अविलंब इसकी भरपाई के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका, रूस और चीन आदि के साथ मिलकर अराजक तत्वों पर कार्रवाई की जानी चाहिए, अन्यथा असहयोग मिलने पर भारत की सेना को ही इन पर आक्रमण करके इन्हें भारतीय भूभाग में मिला लेना चाहिए। इसके साथ ही पश्चिमी देशों व ब्रिक्स देशों जैसे लोकतंत्र के कथित दरिंदों को ग्लोबल साउथ के समक्ष बेनकाब करने की स्पष्ट रणनीति अख्तियार करनी चाहिए।

कहने का तातपर्य यह कि विधि के शासन को बहाल करने के लिए भारत व उसके पड़ोसी देशों की सेना को आपसी सांठगांठ करके व स्थानीय सिविल व पुलिस प्रशासन को भरोसे में लेकर निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए। इस दिशा में हर तरह की कुर्बानी के लिए भी तैयार रहना चाहिए और किसी तरह के कत्लेआम से गुरेज नहीं करना चाहिए। अन्यथा भारत विकास और सुशासन की रेस में पिछड़ जाएगा।

समकालीन जेन-जेड की हिंसक प्रवृति को देखते हुए लोगों को आशंका है कि जी-7 और ब्रिक्स के कतिपय चतुर सुजान देश यही अराजकता चाहते हैं, ताकि उनके गोला-बारूद की खपत बढ़े। इसी की आड़ लेकर वे दुनियावी प्राकृतिक संसाधनों को लूट सकें। इसलिए भारत को अविलंब जिला स्तर पर अपनी तैयारी को धार दी जानी चाहिए, ताकि हिंसक व अराजक तत्वों को उनकी औकात में रखा जा सके। अन्यथा यह खूनी लोकतंत्र भविष्य में अमेरिकी पूंजीपतियों का गुलाम हो जाएगा। बहरहाल ये अराजकता पैदा करके हथियार बेचेंगे और भारतीय उपमहाद्वीप भी अरब व खाड़ी देशों की तरह झुलसता रहेगा।

बताते चलें कि कथित पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लद्दाख में चल रहा प्रदर्शन जिस प्रकार से हिंसक हो गया और भाजपा के कार्यालय तक को निशाना बनाया गया, उसमें भाड़े के उत्पाती शामिल नहीं हैं तो क्या हैं? यह ठीक है कि सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की अगुआई में लंबे वक्त से यह मांग उठायी जा रही है और इसे लेकर केंद्र से कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है। लेकिन, इस दौरान इस सोच का हिंसा का हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक दोनों है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि पूरे देश में एक सही संदेश जाए।

यह ठीक है कि सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 और 35-ए के प्रावधान हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर से अलग कर लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाया था। तब सरकार ने वादा किया था कि हालात सामान्य होते ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा। लेकिन अब ऐसा लगता है कि 6 साल बाद लोगों का भरोसा और सब्र डगमगाने लगा है। फिर भी लेह में हिंसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके पीछे विदेशी ताकतों के हाथ की पड़ताल और जम्मू-कश्मीर सरकार की परोक्ष भूमिका की जांच होनी चाहिए।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सोनम वांगचुक इस मुद्दे पर पिछले कई महीनों से आंदोलनरत रहे हैं। पिछले साल मार्च में भी वह 21 दिनों के आमरण अनशन पर बैठे थे। उसके बाद दिल्ली तक पदयात्रा निकाली। इस समय भी उन्होंने 15 दिनों का अनशन शुरू किया था, लेकिन एक दिन पहले दो लोगों की तबीयत बिगड़ी और हालात काबू से बाहर हो ए। यह हिंसा कतई उचित नहीं है।

चूंकि लेह में हुए प्रदर्शन को जेन-जेड का आंदोलन कहा जा रहा है। क्योंकि कुछ दिनों पहले यही पीढ़ी नेपाल में सत्ता बदल चुकी है। लेकिन, नेपाल और लद्दाख की तुलना कतई नहीं की जा सकती है। और न ही हिंसा को किसी भी तरह से जायज ठहराया जा सकता है। वैसे भी सोनम वांगचुक का पूरा आंदोलन अहिंसक रहा है। यहां तक कि सरकार से मतभेद होने पर भी उन्होंने बातचीत का रास्ता नहीं छोड़ा है। लिहाजा, उनके समर्थन में खड़े युवाओं को इसे समझना चाहिए। क्योंकि विदेशी शह प्राप्त हिंसा से उनकी समस्या और अधिक जटिल हो जाएगी।

ऐसे में स्वाभाविक सवाल है कि आखिर इसका समाधान क्या हो सकता है? भारत के प्रगतिशील लोगों की राय है कि इसके लिए लद्दाख के लोगों की चिंता पर संवेदनशीलता से विचार करने की जरूरत है। क्योंकि उनमें यह डर है कि अगर शासन उनके हाथ में न रहा तो प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन होगा। चूंकि छठी अनुसूची, स्वायत्तता और स्वशासन के कुछ विशेष अधिकार देती है। इसलिए असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्र की तरह ही लद्दाख को भी इस सूची के तहत सुरक्षित किये जाने की पहल अविलंब की जानी चाहिए।

बताया गया है कि केंद्र सरकार और आंदोलन में शामिल लेह एपेक्स बॉडी व कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के बीच आगामी 6 अक्टूबर को बातचीत प्रस्तावित है। इसलिए लोगों में यह विश्वास पैदा करना जरूरी है कि फैसलों में लद्दाख के हितों का ख्याल रखा जाएगा। इसका सबसे बेहतर तरीका पारदर्शिता है। वहीं, जनता को भी समझना होगा कि सरकार के लिए हर मांग मानना और तुरंत मानना संभव नहीं होता है। इसके लिए भी कमेटी गठित करनी पड़ती है।

 

- कमलेश पांडेय

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