अंत्योदय की बदलती परिभाषा: गरीबी से गरिमा तक

अंत्योदय की बदलती परिभाषा: गरीबी से गरिमा तक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिनों गुजरात के भावनगर में कहा है कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन अन्य देशों पर निर्भरता है और जितनी ज्यादा विदेशी निर्भरता होगी, उतनी ज्यादा राष्ट्रीय विफलता बढ़ेगी। उन्होंने यहां तक कहा कि 140 करोड़ भारतीयों का भविष्य बाहरी ताकतों पर नहीं छोड़ा जा सकता और इसके लिए भारत को आत्मनिर्भर बनना ही होगा। आत्मनिर्भरता देश के सभी समस्याओं का समाधान है और यही राष्ट्रीय सौभाग्य और विकास की कुंजी है।

इससे साफ है कि 2025 की अंतिम तिमाही से पहले चले अंतरराष्ट्रीय दांवपेचों के दृष्टिगत प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को आगाह कर दिया है कि जितनी ज्यादा विदेशी निर्भरता होगी, उतनी ज्यादा राष्ट्रीय विफलता होगी। ऐसा कहकर उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। एक तरफ तो उन्होंने चीन से आयात पर और अमेरिका को निर्यात पर या ऐसे ही अन्य देशों पर निर्भरता समाप्त करने के लिए सोच और साधन दोनों बदलने का आह्वान किया है।

वहीं, दूसरी तरह विदेशी बहु समझी जाने वाली कांग्रेस नेत्री श्रीमती सोनिया गांधी और उनके पुत्र-पुत्रियों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के विदेशी तिकड़मों से भी सावधान रहने के इशारे किए हैं, क्योंकि: उनका मुस्लिम प्रेम, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका प्रेम और राष्ट्रविरोधी ताकतों को सियासी संरक्षण देश के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। चूंकि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और सोनिया गांधी-प्रियंका गांधी क्रमशः राज्यसभा व लोकसभा के सांसद हैं। इसलिए इनकी हर कोशिशों पर देश-दुनिया की नजर रहती है।

प्रधानमंत्री मोदी की मानें तो किसी भी मामले में विदेशी निर्भरता से राष्ट्रीय स्वाभिमान को नुकसान पहुंचता है। जब देश अपनी जरूरतों के लिए बाहरी देशों पर निर्भर होता है, तो उसका स्वाभिमान कमजोर पड़ता है। देश का विकास और फैसले बाहरी ताकतों के प्रभाव में आ जाते हैं, जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो सकते हैं। वहीं विदेशी निर्भरता से आर्थिक नुकसान और अस्थिरता पैदा होती है। विदेशी निर्भरता से देश की आर्थिक सुरक्षा कमजोर होती है। वैश्विक बाजारों या विदेशी साधनों पर निर्भरता से आर्थिक संकट आने पर देश प्रभावित होता है, जिससे विकास रुक सकता है।

विदेशी निर्भरता से विकास भी बाधित होता है। आत्मनिर्भरता की कमी के कारण देश अपने संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं कर पाता और उद्योग, तकनीक, और नौकरियों का विकास रुक जाता है। इससे राष्ट्रीय विकास की गति धीमी हो जाती है। इसके अलावा, विदेशी निर्भरता से रणनीतिक खतरा भी बढ़ता है। सुरक्षा और महत्वपूर्ण संसाधनों में विदेशी निर्भरता से राष्ट्रीय सुरक्षा कमजोर होती है। आपातकाल में या भू-राजनीतिक तनाव में यह बड़ी समस्या बन सकती है।

यही वजह है कि भारत अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए कई तरीकों और नीतियों पर काम कर रहा है। एक ओर भारत स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दे रहा है, जिसके तहत घरेलू उत्पादन पर जोर देने से जहां आयात कम होगा, वहीं देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। इसके लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम को प्रोत्साहित करना जरूरी है। वहीं, दूसरी ओर भारत स्टार्टअप और नवाचार को बढ़ावा दे रहा है। इसके तहत नई तकनीकों और नवाचार को अपनाकर भारत को तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम तेज की जा रही है, जिससे रोजगार निर्माण और आर्थिक विकास भी होगा।

वहीं, सरकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भी मजबूत करने पर फोकस कर रही है। इससे अनुसंधान-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में निवेश से भारत अपनी तकनीकी निर्भरता घटा रहा है। वहीं कौशल विकास के द्वारा युवाओं को कौशल शिक्षा देकर उन्हें रोजगार के साथ-साथ उद्यमिता के लिए तैयार करने की कोशिशें जारी हैं। वहीं, कृषि और ग्रामोद्योगों का सशक्तिकरण किया जा रहा है। इससे किसानों की आय बढ़ाने, उर्वरकों और कृषि उपकरणों का स्थानीय उत्पादन बढ़ाने की पहल जारी है।

इसके अलावा डिजिटल स्वाधीनता के तहत स्वदेशी डिजिटल प्लेटफॉर्म और तकनीकों के विकास एवं उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। वहीं, ऊर्जा स्वतंत्रता के तहत नवीनीकरणीय ऊर्जा, जैसे- सौर, पवन, और हाइड्रोजन ऊर्जा पर निवेश कर ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करने की मुहिम जारी है। वहीं, सरकारी योजनाओं के तहत पीएम स्वनिधि योजना, जैसे- छोटे व्यवसायों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

 

देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस अभियान को 2020 में शुरू किया था और इसे 2047 तक एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लक्ष्य से जोड़ा गया है। इसके तहत रक्षा, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, और कृषि जैसे सभी प्रमुख क्षेत्र आत्मनिर्भरता के लिए काम कर रहे हैं। इस प्रकार भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए व्यापक आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और नीति स्तर पर काम करना होगा जो देश की समग्र ताकत और स्थिरता को बढ़ाएगा।

 

जहां तक विदेशी निर्भरता कम करने के मुख्य उपाय की बात है तो रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने की कोशिशें तेज हैं। इसके तहत रक्षा उपकरणों, हथियारों और तकनीकी संसाधनों का अधिक से अधिक स्थानीय उत्पादन करने की पहल तेज है। भारत ने रक्षा क्षेत्र में 5वीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की है, जिसमें 3,000 से अधिक वस्तुओं का घरेलू उत्पादन सुनिश्चित किया गया है। इससे विदेशों से रक्षा उपकरणों की निर्भरता कम होती है और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होती है।

 

वहीं, स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके दृष्टिगत मेक इन इंडिया पहल के तहत घरेलू उद्योगों और एमएसएमइज (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) को समर्थन देने को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि आयात की जगह घरेलू उत्पादन बढ़े। वहीं, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके मद्देनजर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), निजी कंपनियों, स्टार्टअप्स और शिक्षाविदों के बीच सहयोग बढ़ाकर तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करने की मुहिम तेज की गई है।

 

वहीं, औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र का सुदृढ़ीकरण करते हुए रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना, निवेश और प्रोत्साहन से स्वदेशी उत्पादन को तेजी देने की पहल परवान चढ़ाई जा चुकी है। वहीं, निर्यात और व्यापार सुधार के तहत बंदरगाहों और व्यापार प्रक्रियाओं को सरल और सक्षम बनाने की मुहिम तेज है, ताकि विदेशी निर्भरता कम होकर स्वदेशी व्यापार बढ़े। वहीं, विदेशी निर्भरता घटाने के लिए ऊर्जा, कृषि, और डिजिटल क्षेत्र में स्थानीय समाधानों को अपनाने और विकसित करने पर बल दिया जा रहा है। इसके लिए उन सरकारी नीतियों और योजनाओं को लागू किया जा रहा है जो विदेशी वस्तुओं के आयात पर नियंत्रण और स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करें।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बात पर जोर दिया है कि चिप्स (सेमीकंडक्टर चिप्स) व जहाज जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र भारत में ही विकसित करने होंगे ताकि विदेशी निर्भरता समाप्त हो। आत्मनिर्भरता ही देश के विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा की मजबूत नींव है। इस प्रकार, स्वदेशीकरण, स्थानीय उत्पादन, अनुसंधान विकास, और नीति स्तर पर सुधार करके भारत अपनी विदेशी निर्भरता कम कर सकता है। यही वजह है कि भारत में स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करने के कई प्रभावी उपाय हैं जो सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर अपनाए जा सकते हैं।

स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और बढ़ावा देने के दृष्टिगत लोगों को जागरूक करना है ताकि वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दें और विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें। इससे घरेलू उद्योगों को समर्थन मिलेगा। वहीं, सरकार के समर्थन और प्रोत्साहन से सरकार को स्वदेशी उत्पादकों को अनुदान, सहूलियत भरे ऋण, टैक्स छूट जैसे वित्तीय प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि वे उत्पादन बढ़ा सकें। साथ ही सरकार द्वारा प्रचार-प्रसार अभियान चलाकर स्वदेशी वस्तुओं की महत्ता और गुणवत्ता जनता तक पहुंचाई जाए।

वहीं, गुणवत्ता में सुधार और नए डिज़ाइन से स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता और पैकेजिंग बेहतर करनी होगी ताकि वे बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बने रहें। इस हेतु उत्पादों के नए डिज़ाइनों और तकनीकों को अपनाना आवश्यक है। वहीं, स्थानीय मेलों, प्रदर्शनियों और सोशल मीडिया प्रचार के माध्यम से स्वदेशी उत्पादों के प्रचार के लिए स्थानीय स्तर पर मेले, हाट और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाएगा। इस प्रकार सोशल मीडिया व अन्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर इनके प्रचार-प्रसार से युवाओं व व्यापक जनता को जोड़ा जा सकता है।

कौशल विकास और पारंपरिक उद्योगों का संवर्द्धन प्रदान करने की नीति के तहत हथकरघा, कुटीर उद्योग, जैविक खेती जैसे पारंपरिक और ग्रामीण उद्योगों में युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार दिए जा रहे हैं। इससे स्थानीय उत्पादन बढ़ेगा और सांस्कृतिक परंपराएं जीवित रहेंगी।

वहीं, व्यापारियों और उपभोक्ताओं को प्रेरित करने से व्यापार संगठन और नागरिक समाज मिलकर स्वदेशी उत्पादों के लिए जन-अभियान चलाएंगे। इससे दुकानों में "केवल भारतीय सामान" जैसी पहल कर लोगों के बीच स्वदेशी की जागरूकता बढ़ाने की कोशिशें परवान चढ़ेंगी।

संरक्षणवाद और आर्थिक राष्ट्रवाद के तहत घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए उचित व्यापार नीति बनाने की पहल तेज है जिससे आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहन मिलेगा। वहीं, सरकारी इलेक्ट्रॉनिक मार्केटप्लेस (GeM) जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर स्वदेशी उत्पादकों को प्राथमिकता देकर सरकारी खरीद में उनका हिस्सा बढ़ाया गया है जिससे संतुलित विकास को बढ़ावा मिला है। कहना न होगा कि इन उपायों से भारत में स्वदेशी उत्पादन को मजबूती मिलेगी, जो आर्थिक आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय विकास का ठोस आधार बनेगा।

 

- कमलेश पांडेय

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