क्या भारत की घर में घुसकर मारने की नीति पर असर डालेगा सऊदी–पाक करार?

क्या भारत की घर में घुसकर मारने की नीति पर असर डालेगा सऊदी–पाक करार?

पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ रक्षा करार कर लिया है इससे पाकिस्तान यह सोच रहा होगा कि अब किसी आतंकी वारदात के बाद भारत उसे घर में घुस कर मार नहीं पायेगा। यदि ऐसा है तो पाकिस्तान की यह सोच गलत है कि क्योंकि भारत कह चुका है कि हमले का बदला घर में घुस कर लिया जायेगा और यही अब न्यू नॉर्मल है। देखा जाये तो ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत को पता था कि पाकिस्तान को बचाने के लिए उसके दोस्त चीन और तुर्की आयेंगे लेकिन फिर भी भारत ने घर में घुस कर मारा। इसी तरह बालाकोट एअर स्ट्राइक से पहले भारत को पता था कि पाकिस्तान को बचाने के लिए चीन पीछे से उसका साथ देगा फिर भी भारत ने घर में घुस कर मारा। इसी प्रकार, भारत को सर्जिकल स्ट्राइक से पहले पता था कि पाकिस्तान को बचाने के लिए आतंकवादी संगठन और उसके आका तथा चीन सामने आयेंगे लेकिन भारत ने फिर भी घर में घुस कर मारा। इसलिए पाकिस्तान चाहे सऊदी अरब से रक्षा संबंध बना ले या फिर दुनिया की किसी भी दूसरी शक्ति से रक्षा करार कर ले, भारत की नीति स्पष्ट है कि यदि उसके खिलाफ कोई हमला हुआ तो हम राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए घर में घुस कर बदला लेंगे चाहे सामने एक दुश्मन हो या दुश्मन के एक दर्जन साथी भी साथ हों।

भारत और सऊदी अरब की सैन्य शक्ति

यहां यह भी समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ रक्षा करार तो कर लिया है लेकिन सऊदी अरब की सैन्य ताकत भारतीय सेना के सामने कितनी प्रभावी है। हम आपको बता दें कि भारत की सेना वर्तमान में लगभग 1.45 मिलियन सक्रिय और 2.1 मिलियन आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। इसमें थलसेना, नौसेना, वायुसेना और विशेष बल शामिल हैं। इसके विपरीत, सऊदी अरब की सेना 2.5–2.6 लाख सक्रिय सैनिकों और कुछ हजार आरक्षित बलों पर आधारित है। स्पष्ट है कि केवल संख्या के हिसाब से भी भारतीय सेना कई गुना बड़ी और विविधीकृत है।

इसके अलावा, भारतीय थलसेना के पास T-90 और अर्जुन टैंकों जैसी आधुनिक सामरिक क्षमताएं हैं और यह भारी आर्टिलरी और अनुभवी पैदल सेना से लैस है। दूसरी ओर, सऊदी सेना आधुनिक हथियारों के बावजूद अपने युद्ध अनुभव में सीमित है। यमन के संघर्षों ने इसे पूरी तरह उजागर किया है कि केवल हथियारों की मौजूदगी किसी सैन्य ताकत को अजेय नहीं बनाती।

इसके अलावा, भारतीय वायुसेना लगभग 750 लड़ाकू विमानों के साथ क्षेत्रीय श्रेष्ठता रखती है, जिसमें Su-30MKI, Mirage 2000, Rafale और हल्के LCA Tejas शामिल हैं। इसके मुकाबले, सऊदी वायुसेना में 300–350 लड़ाकू विमान हैं, जो आधुनिक तो हैं, पर संचालन क्षमता में विदेशी विशेषज्ञता पर निर्भर हैं। वहीं, भारतीय नौसेना अपने विमानवाहक पोत INS विक्रांत, 150+ जहाजों और रणनीतिक पनडुब्बियों के साथ, सऊदी नौसेना की तुलना में क्षेत्रीय समुद्री नियंत्रण में कहीं अधिक सक्षम है।


इसके अलावा, भारतीय सेना स्वदेशी रक्षा तकनीक, परमाणु तंत्र, बैलिस्टिक मिसाइल और साइबर क्षमता में आत्मनिर्भर है। इसके विपरीत, सऊदी अरब भारी निवेश के बावजूद विदेशी तकनीक पर निर्भर है। इसके एंटी-मिसाइल सिस्टम और आधुनिक विमान उतने प्रभावी नहीं हैं, जितना कि उनके बजट से प्रतीत होता है। सऊदी अरब ने Patriot और THAAD जैसी प्रणालियाँ तैनात की हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल और क्रूज़ मिसाइल खतरों से सुरक्षा देती हैं। फिर भी यमन के हौथी विद्रोहियों द्वारा ड्रोन और मिसाइल हमलों ने यह साबित किया कि यह कवच पूरी तरह अभेद्य नहीं है।


देखा जाये तो असली ताकत का निर्धारण केवल हथियार और बजट से नहीं होता। भारत ने कई युद्धों और हाल के सीमाई तनावों में वास्तविक अनुभव और रणनीतिक समझ का परिचय दिया है। सऊदी अरब के पास यह अनुभव ही नहीं है। भारत के पास रणनीतिक स्वतंत्रता और निर्णायक क्षमता है, जबकि सऊदी अरब को लंबी लड़ाइयों में विदेशी समर्थन की आवश्यकता पड़ेगी। कुल मिलाकर देखें तो सऊदी अरब की सेना तकनीकी रूप से आधुनिक और बजट में बड़ी जरूर है, लेकिन भारतीय सेना की तुलना में कमज़ोर, अनुभवहीन और विदेशी सहायता पर निर्भर है। भारतीय सेना के पास संख्या, विविधता, सामरिक अनुभव और आत्मनिर्भरता की वजह से निर्णायक श्रेष्ठता है। किसी भी संभावित संघर्ष में भारत की “घर में घुसकर बदला” नीति को चुनौती देना आसान नहीं होगा।


सच यही है कि सऊदी-पाक समझौता पाकिस्तान को आंशिक आत्मविश्वास दे सकता है, लेकिन भारतीय सामरिक दृष्टिकोण और युद्ध अनुभव उसे क्षेत्रीय परिदृश्य में हमेशा प्रमुख बनाए रखेंगे। देखा जाये तो आधुनिक युद्ध और रणनीति केवल चमक-दमक से तय नहीं होती; असली ताकत अनुभव, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक सोच में निहित होती है और इन मामलों में भारत सऊदी अरब से कहीं आगे है।


सऊदी अरब और भारत के संबंध

साथ ही, यह भी यथार्थ है कि सऊदी अरब की खुद की रणनीतिक प्राथमिकताएँ भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने पर केंद्रित हैं। हम आपको बता दें कि भारत और सऊदी अरब के बीच रिश्ते केवल तेल आयात और प्रवासी भारतीयों तक सीमित नहीं हैं। बीते वर्षों में रक्षा और सुरक्षा सहयोग भी बढ़ा है। सऊदी अरब भारत का रणनीतिक साझेदार है और दोनों देशों ने आतंकवाद विरोधी सहयोग पर कई समझौते किए हैं। भारत सऊदी को एक स्थिर साझेदार के रूप में देखता है और सऊदी को भी भारत की आर्थिक और तकनीकी शक्ति की आवश्यकता है। यदि किसी विशेष परिस्थिति में सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देता भी है तो उस परिस्थिति में भी भारत के लिए अवसर हैं। इज़रायल और ईरान जैसे देशों के साथ गहरे सामरिक संबंध भारत के लिए एक संतुलनकारी भूमिका निभा सकते हैं।


करार से पाकिस्तान को क्या लाभ होगा?

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रक्षा करार को भारत के लिए चिंताजनक बता रहे लोगों को यह भी देखना चाहिए कि पाकिस्तान लंबे समय से सऊदी अरब की सैन्य मदद पर निर्भर रहा है। सऊदी ने उसे वित्तीय पैकेज दिए हैं और कभी-कभी तेल आपूर्ति में रियायतें भी दी हैं। नए रक्षा करार से पाकिस्तान को यह भरोसा मिल सकता है कि सऊदी अरब उसके साथ खड़ा होगा। लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो सऊदी अरब भारत के साथ अपने रिश्ते खराब करने का जोखिम नहीं उठाएगा, क्योंकि भारत न केवल एक बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है बल्कि निवेश और व्यापार का भी अहम बाज़ार है।

जहां तक सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट की बात है तो उसे इस तरह देखा जा सकता है कि दशकों से दोनों देशों के बीच जो सुरक्षा सहयोग अनौपचारिक स्तर पर चलता रहा, अब उसे एक औपचारिक रूप प्रदान कर दिया गया है। इस समझौते की सबसे अहम धारा यह है कि किसी एक देश पर आक्रमण, दोनों पर आक्रमण माना जाएगा। पाकिस्तान के लिए यह समझौता कई स्तरों पर महत्व रखता है। सबसे पहले, यह उसे एक प्रकार की रणनीतिक सुरक्षा गारंटी प्रदान करता है। अफगानिस्तान की अस्थिरता और भारत के साथ निरंतर तनावपूर्ण रिश्तों के बीच, सऊदी अरब जैसा शक्तिशाली सहयोगी औपचारिक रूप से पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। इससे पाकिस्तान का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह अपने पड़ोसियों पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा।

दूसरे, यह संधि पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहयोग की नई राहें खोलती है। उसकी डगमगाती अर्थव्यवस्था और सीमित रक्षा संसाधनों के बीच सऊदी अरब से संभावित वित्तीय व तकनीकी सहयोग राहत देगा। अब तक पाकिस्तान ने 8,000 से अधिक सऊदी सैन्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिया है। इस समझौते से संयुक्त अभ्यास और हथियार प्रणालियों का आदान-प्रदान और गहरा हो सकता है। तीसरे, यह समझौता पाकिस्तान की इस्लामी दुनिया में कूटनीतिक हैसियत को मजबूती देता है। लंबे समय से पाकिस्तान खुद को इस्लामिक जगत का प्रतिनिधि मानने की कोशिश करता रहा है। सऊदी अरब, जो इस्लामी देशों का परंपरागत नेता माना जाता है, यदि पाकिस्तान के साथ औपचारिक रक्षा-संधि करता है तो इस्लामिक मंचों पर पाकिस्तान की स्थिति स्वाभाविक रूप से मजबूत होती है।

इसके अलावा, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच रक्षा करार को यदि अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो इसमें अमेरिका और चीन दोनों की भूमिका भी अहम होगी। अमेरिका पारंपरिक रूप से सऊदी सुरक्षा का संरक्षक रहा है, जबकि चीन पाकिस्तान का निकटतम सामरिक सहयोगी है। यदि यह समझौता व्यावहारिक रूप में गहराता है, तो यह दोनों महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का नया मंच भी बन सकता है। इज़रायल कारक को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक ओर सऊदी अरब इज़रायल के साथ संभावित सामान्यीकरण की ओर कदम बढ़ा रहा था, दूसरी ओर पाकिस्तान इज़रायल विरोध की राजनीति करता है। भारत, जो इज़रायल का करीबी सुरक्षा साझेदार है, इस नए समीकरण में एक संवेदनशील स्थिति में आ सकता है।

बहरहाल, यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक परीक्षण भी है। यह भारत को यह सोचने के लिए बाध्य करता है कि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में किस प्रकार वह अपनी सुरक्षा, ऊर्जा और कूटनीतिक हितों को संतुलित रखते हुए क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है। यहां एक बात और समझनी होगी कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच रक्षा समझौता किसी भी आक्रमण की बात कर रहा है लेकिन इतिहास बताता है कि भारत ने कभी आक्रमण नहीं किया बल्कि पलटवार किया है। आगे भी यदि कोई स्थिति बनी तो बदला लेने में कोई करार भारत के रास्ते की बाधा नहीं बनेगा।


-नीरज कुमार दुबे


Leave a Reply

Required fields are marked *