असम सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है, जो न केवल राज्य बल्कि पूरे देश की जनसांख्यिकीय सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम आपको बता दें कि असम कैबिनेट ने नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को मंजूरी दी है, जिसके तहत जिला कलेक्टर (DC) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) को सीधे यह अधिकार दे दिया गया है कि वह अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें 10 दिनों के भीतर देश से बाहर निकाल सकें। यह निर्णय असम में लंबे समय से लंबित पड़े अवैध प्रवासियों के मुद्दे को सुलझाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।
हम आपको बता दें कि अब तक अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की प्रक्रिया Foreigners’ Tribunals के जरिये होती थी, जिसमें मामला लंबा खिंच जाता था और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में वर्षों बीत जाते थे। वर्तमान में 82,000 से अधिक मामले लंबित हैं। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने सही कहा कि यह नई व्यवस्था न केवल बोझ कम करेगी बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को भी रोकेगी।
हम आपको बता दें कि नई SOP के तहत सीमा पार करने के 12 घंटे के भीतर पकड़े गए घुसपैठियों को तुरंत वापस धकेल दिया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति 10 दिनों में भारतीय नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो DC उसे निष्कासन आदेश जारी करेगा और 24 घंटे के भीतर निर्धारित मार्ग से देश छोड़ने का निर्देश दिया जाएगा। इसके अलावा, बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा तुरंत पोर्टल पर दर्ज किया जाएगा। साथ ही आदेश की अवहेलना करने वालों को होल्डिंग सेंटर या BSF के हवाले किया जाएगा।
देखा जाये तो असम की सबसे बड़ी चिंता अवैध बांग्लादेशी मुसलमानों की बढ़ती आबादी रही है। 1980 के दशक में चला विदेशी-विरोधी आंदोलन इसी मुद्दे से उपजा था, जिसने अंततः 1985 के असम समझौते का रूप लिया। इस नई SOP से पहली बार 1950 के Immigrants (Expulsion from Assam) Act को प्रभावी रूप से लागू किया जाएगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी संवैधानिक रूप से मान्यता दी है।
हम आपको बता दें कि अवैध प्रवासी असम के मूल निवासियों और विशेषकर जनजातीय समाज के लिए असुरक्षा का कारण बने हुए हैं। नए कानून से इस पर अंकुश लगेगा। साथ ही नये कानून से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी सेवाओं पर अवैध प्रवासियों का बोझ घटेगा। इसके अलावा, अवैध घुसपैठ आतंकवाद, अपराध और तस्करी को भी बढ़ावा देती है। त्वरित निष्कासन से राज्य की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होगी। साथ ही असम की राजनीति लंबे समय से “विदेशी बनाम स्थानीय” बहस में उलझी रही है। इस फैसले से स्थानीय जनता का विश्वास सरकार पर और मजबूत होगा।
देखा जाये तो असम सरकार का यह निर्णय केवल राज्य तक सीमित नहीं है। इसका संदेश यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें यदि चाहें तो संवैधानिक प्रावधानों के तहत अवैध प्रवासियों को बाहर करने का ठोस रास्ता निकाल सकती हैं। यह कदम उन अन्य सीमावर्ती राज्यों के लिए भी उदाहरण बनेगा, जहां बांग्लादेश और म्यांमार से घुसपैठ की समस्या है।
बहरहाल, असम सरकार का यह साहसिक निर्णय न केवल राज्य की पहचान और सुरक्षा की रक्षा करेगा बल्कि पूरे देश के लिए “अवैध घुसपैठ मुक्त भारत” अभियान में सहायक सिद्ध होगा। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने जिस दृढ़ संकल्प से इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है, वह दिखाता है कि भारत अब अवैध प्रवासियों के बोझ को ढोने को तैयार नहीं है। यह कदम आने वाले वर्षों में असम की राजनीति और सामाजिक संरचना में स्थायी बदलाव ला सकता है।