जम्मू-कश्मीर में आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक को जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत हिरासत में लेना एक साहसिक और आवश्यक फैसला है। विपक्षी दलों और आम आदमी पार्टी के समर्थकों का इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताना न केवल भ्रामक है बल्कि कश्मीर की संवेदनशील स्थिति को समझने में उनकी विफलता भी दर्शाता है।
देखा जाये तो कश्मीर घाटी और डोडा जैसे इलाकों में हालात बेहद नाजुक रहते हैं। राजनीतिक नेताओं के उत्तेजक भाषण या भीड़ को भड़काने वाले बयान अक्सर कानून-व्यवस्था को अस्थिर करते हैं। मेहराज मलिक पर आरोप है कि उन्होंने सार्वजनिक व्यवस्था में खलल डाला और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ असम्मानजनक टिप्पणी की। ऐसे वक्त में जब कश्मीर आतंकवाद और कट्टरपंथ से जूझ रहा है, किसी भी जनप्रतिनिधि का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार जनता को गलत दिशा में मोड़ सकता है।
उधर, आम आदमी पार्टी का दावा है कि भाजपा के इशारे पर यह कार्रवाई हुई है। लेकिन यह तर्क खोखला है। PSA जम्मू-कश्मीर में पहले भी विभिन्न सरकारों के दौर में लागू हुआ है और इसे राजनीतिक रंग देना जन सुरक्षा के मुद्दे को हल्का बनाना है। लोकतंत्र का अर्थ यह नहीं है कि कोई भी विधायक अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल अराजकता फैलाने में करे। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के विरोध प्रदर्शनों की आड़ में जो घटनाएं सामने आईं, जैसे डोडा में जाम के कारण बीमार बच्ची की मौत, यह बताती हैं कि ऐसे आंदोलन आम जनता की जान और सुरक्षा को खतरे में डालते हैं। आम आदमी पार्टी के नेताओं को यह समझना चाहिए कि लोकतांत्रिक अधिकार और जन सुरक्षा के बीच संतुलन ही शासन की प्राथमिकता होती है।
इसके अलावा, मेहराज मलिक की गिरफ्तारी कश्मीर की राजनीति में कई संकेत छोड़ती है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने हिरासत की निंदा की है, लेकिन जनता अच्छी तरह समझती है कि सुरक्षा से समझौता कोई विकल्प नहीं है। वहीं आम आदमी पार्टी एक वैकल्पिक राजनीति का दावा करती है, पर मेहराज मलिक जैसे नेताओं की गतिविधियां उसे “अराजकता की राजनीति” तक सीमित कर रही हैं। देखा जाए तो चाहे कोई भी पद हो, यदि राष्ट्रीय सुरक्षा और जन व्यवस्था खतरे में पड़ती है तो कड़ी कार्रवाई होगी, यह संदेश साफ-साफ जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने दे दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मेहराज मलिक जैसी मानसिकता, जहां नेता व्यक्तिगत लोकप्रियता और भीड़ प्रबंधन के लिए प्रशासन से टकराव का रास्ता चुनते हैं, वह कश्मीर को अस्थिर करने वाली पुरानी राजनीति की झलक देती है। यह मानसिकता ही अतीत में आतंकवाद और अलगाववाद को हवा देती रही है। इसलिए अब ज़रूरी है कि ऐसे नेताओं पर सख्त कार्रवाई कर स्पष्ट संदेश दिया जाए कि लोकतांत्रिक ढांचे में रहकर ही राजनीति होगी।
सबको समझना होगा कि कश्मीर में शांति और विकास तभी संभव है जब कानून-व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। मेहराज मलिक की हिरासत प्रशासन का कड़ा लेकिन सही कदम है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि जन सुरक्षा सर्वोपरि है, चाहे आरोपी कितना भी बड़ा राजनीतिक चेहरा क्यों न हो।