पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपने वरिष्ठ नेता और बांकुड़ा से सांसद कल्याण बनर्जी को पार्टी के मुख्य सचेतक पद से हटा दिया है साथ ही लोकसभा में टीमएसी संसदीय दल के नेता पद से सुदीप बंधोपाध्याय को हटा कर अभिषेक बनर्जी को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उल्लेखनीय है कि सुदीप बंधोपाध्याय लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे हैं इसलिए उनकी जगह तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी को लाया गया है। लेकिन कल्याण बनर्जी को अपना पद जिन परिस्थितियों में छोड़ना पड़ा है उसे महज संगठनात्मक फेरबदल नहीं माना जा सकता। दरअसल, यह बदलाव तृणमूल के भीतर चल रहे शक्ति संतुलन, आंतरिक खींचतान और आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की रणनीति से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।
जहां तक तृणमूल कांग्रेस में अभिषेक बनर्जी के लगातार बढ़ते ग्राफ की बात है तो आपको बता दें कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे पहले से ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और अब संसद में भी उन्हें नेतृत्व सौंपने से संकेत साफ है कि टीएमसी नेतृत्व का उत्तराधिकार धीरे-धीरे उनके हाथों में केंद्रित हो रहा है। संसदीय दल का नेता बनाना केवल प्रतीकात्मक पद नहीं है, यह निर्णय केंद्रीय राजनीति में पार्टी की आवाज़ किसके माध्यम से पहुंचेगी, इसका स्पष्ट संकेत है। हम आपको यह भी याद दिला दें कि हाल ही में जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों को विभिन्न देशों में देश का पक्ष रखने के लिए भेजा था तब सरकार ने तृणमूल कांग्रेस की ओर से सांसद युसूफ पठान का नाम तय किया था लेकिन ममता बनर्जी ने इस पर आपत्ति जताते हुए उनकी जगह अभिषेक बनर्जी का नाम शामिल करवाया था और संदेश दिया था कि देश के स्तर पर हो या दुनिया के स्तर पर, तृणमूल का भावी चेहरा अभिषेक बनर्जी ही होंगे।
इसके अलावा, अभिषेक बनर्जी को संसदीय दल की कमान सौंपना एक ओर तृणमूल की रणनीतिक चुस्ती और नेतृत्व सशक्तीकरण को दर्शाता है, तो दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक संवाद की जगह केंद्रीकरण ने ले ली है? देखा जाये तो यह बदलाव एक दोधारी तलवार की तरह है— जो पार्टी को अनुशासित भी कर सकता है और आंतरिक असंतोष को हवा भी दे सकता है। आगामी महीनों में इस बदलाव का असली असर तब दिखेगा जब टीएमसी लोकसभा में अपनी रणनीति को नया आकार देगी और विपक्षी दलों के साथ अपने रिश्ते फिर से परिभाषित करेगी।
कल्याण बनर्जी के आरोप
उधर, लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा देने वाले कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया है कि सांसदों के बीच समन्वय की कमी के लिए उन्हें गलत तरीके से दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि कुछ सांसद संसद में बमुश्किल ही आते हैं। कल्याण बनर्जी ने यह कदम पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की अध्यक्षता में तृणमूल सांसदों की डिजिटल तरीके से आयोजित एक बैठक के कुछ घंटे बाद उठाया। बैठक के दौरान ममता बनर्जी ने पार्टी के संसदीय दल में खराब समन्वय पर अप्रसन्नता जतायी थी। कल्याण बनर्जी ने एक समाचार चैनल से कहा, मैंने लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक का पद छोड़ दिया है, क्योंकि दीदी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) ने डिजिटल बैठक के दौरान कहा था कि पार्टी सांसदों के बीच समन्वय की कमी है। इसलिए दोष मुझ पर है। इसलिए, मैंने पद छोड़ने का फैसला किया है। भावुक होते हुए कल्याण बनर्जी ने कहा कि वह एक साथी सांसद द्वारा उनके "अपमान" पर पार्टी की चुप्पी से बहुत आहत हैं। उनका इशारा परोक्ष तौर पर महुआ मोइत्रा की ओर था।
नब्बे के दशक के उत्तरार्ध से तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के साथ रहे वरिष्ठ नेता कल्याण बनर्जी ने कहा, "दीदी कहती हैं कि लोकसभा सदस्य लड़ रहे हैं और झगड़ा कर रहे हैं...क्या मुझे उन लोगों को बर्दाश्त करना चाहिए जो मुझे अपशब्द कहते हैं? मैंने पार्टी को सूचित किया, लेकिन मेरा अपमान करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, वे मुझे ही दोषी ठहरा रहे हैं। ममता बनर्जी जिस तरीके से चाहें पार्टी को चलायें। उन्होंने पार्टी के आंतरिक मामलों पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा, "मैं इतना क्षुब्ध हूं कि मैं राजनीति छोड़ने के बारे में भी सोच रहा हूं।
हम आपको यह भी बता दें कि एक ओर कल्याण बनर्जी ने दावा किया कि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है, लेकिन उन्होंने कथित तौर पर अपने करीबी सहयोगियों से कहा है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है, खासकर कृष्णानगर की सांसद महुआ मोइत्रा के साथ महीनों तक चले तनाव और उससे पहले पूर्व क्रिकेटर और तृणमूल सांसद कीर्ति आजाद के साथ तनाव के बीच। कल्याण बनर्जी ने अपने इस्तीफे से ठीक पहले एक्स पर एक लंबी पोस्ट में महुआ मोइत्रा पर उनके साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया था। उन्होंने पोस्ट में कहा था, मैंने महुआ मोइत्रा द्वारा हाल ही में एक सार्वजनिक पॉडकास्ट में की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों पर ध्यान दिया है। उनके शब्दों का चयन, जिसमें एक साथी सांसद की तुलना सुअर से करने जैसी अमानवीय भाषा का प्रयोग शामिल है, न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि सभ्य संवाद के बुनियादी मानदंडों की उपेक्षा को भी दर्शाता है। उन्होंने लिखा, किसी पुरुष सहकर्मी को यौन रूप से कुंठित कहना कोई साहस नहीं है- यह सरासर दुर्व्यवहार है। अगर ऐसी भाषा किसी महिला के लिए इस्तेमाल की जाती, तो पूरे देश में आक्रोश फैल जाता और यह सही भी है। लेकिन जब कोई पुरुष निशाना होता है, तो इसे या तो नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है या फिर सराहा जाता है। एक बात साफ़ है: दुर्व्यवहार तो दुर्व्यवहार ही होता है- चाहे वह किसी के साथ हो।
कल्याण बनर्जी ने कहा था, अगर मोइत्रा सोचती हैं कि अपशब्द कहने से उनकी अपनी नाकामियां छिप जाएंगी या उनके रिकॉर्ड पर गंभीर सवालों से ध्यान हट जाएगा, तो वह खुद को धोखा दे रही हैं। जो लोग जवाब देने के बजाय अपशब्दों पर भरोसा करते हैं, वे लोकतंत्र के चैंपियन नहीं हैं- वे इसकी शर्मिंदगी हैं और इस देश के लोग उनकी इस हरकत को समझ सकते हैं। हम आपको बता दें कि श्रीरामपुर से चार बार के सांसद कल्याण बनर्जी एक वरिष्ठ अधिवक्ता भी हैं। उन्होंने कहा कि वह इस बात से अपमानित महसूस कर रहे हैं कि अनुशासनहीनता और कम उपस्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने की बजाय पार्टी उन्हें ही दोषी ठहरा रही है। कल्याण बनर्जी ने कहा, ममता बनर्जी ने जिन्हें सांसद बनाया है, वे लोकसभा आते भी नहीं हैं। दक्षिण कोलकाता, बैरकपुर, बांकुड़ा, उत्तर कोलकाता के तृणमूल सांसदों में से शायद ही कोई संसद आता है। मैं क्या कर सकता हूं? मेरा क्या कसूर है? मुझे ही हर चीज के लिए दोषी ठहराया जा रहा है।
कल्याण बनर्जी ने साथ ही एक बांग्ला टीवी चैनल से कहा, "अगर ज़्यादातर सांसद संसद से नियमित रूप से अनुपस्थित रहते हैं, तो मैं क्या करूँगा? क्या ममता बनर्जी जानती हैं कि संसद का दैनिक कामकाज कैसे चल रहा है? अगर पार्टी कदम नहीं उठाए, तो मैं क्या करता? मैंने सबसे ज़्यादा काम किया, लेकिन मैं ऑक्सफ़ोर्ड या कैम्ब्रिज का स्कॉलर नहीं हूँ। मैं महंगी साड़ियां नहीं पहनता। जो लोग ममता बनर्जी की आलोचना करते हैं, उन्हें इनाम मिलता है।
बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी ने बैठक में किसी का नाम लिये बिना स्पष्ट किया कि सांसदों के बीच गुटबाजी “अस्वीकार्य” है और कहा कि पार्टी को संसद में एकता प्रदर्शित करनी चाहिए। इस बीच, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने बताया है कि ममता बनर्जी विशेष रूप से लोकसभा में एकजुटता की कमी से परेशान थीं। तृणमूल के एक नेता के अनुसार ममता बनर्जी ने बैठक में कहा, राज्यसभा का काम अच्छा चल रहा है, लेकिन लोकसभा सांसदों का प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा है। सुदीप बंदोपाध्याय अस्वस्थ हैं और सौगत रॉय भी। वरिष्ठ नेताओं की अनुपस्थिति में समन्वय चरमरा गया है।
हम आपको बता दें कि कल्याण बनर्जी पार्टी के पुराने और अनुभवी नेताओं में गिने जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वह अभिषेक बनर्जी की नई पीढ़ी की नेतृत्व शैली से असहज दिखते रहे हैं। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण महुआ मोइत्रा प्रकरण है, जहां कल्याण बनर्जी और मोइत्रा के बीच तीखा सार्वजनिक विवाद देखने को मिला था। उस समय अभिषेक ने महुआ मोइत्रा के पक्ष में संकेत दिया था, जिससे कल्याण बनर्जी की स्थिति कमजोर हुई। इस विवाद के बाद से ही अटकलें तेज थीं कि पार्टी में शक्ति संतुलन बदल रहा है।
देखा जाये तो टीएमसी के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती संगठनात्मक अनुशासन और राजनीतिक संदेश की स्पष्टता है। ममता बनर्जी को यह बखूबी समझ आ गया है कि अगर पार्टी को राष्ट्रीय मंच पर गंभीरता से लिया जाना है, तो अंदरूनी विरोध और टकराव की छवि खत्म करनी होगी। कल्याण बनर्जी को हटाने का संदेश साफ है: पार्टी लाइन से अलग चलने वालों को अब कोई छूट नहीं मिलेगी।
बहरहाल, ममता बनर्जी का यह निर्णय निश्चित ही बंगाल की राजनीति को कई स्तरों पर प्रभावित करेगा। जैसे- तृणमूल कांग्रेस के अंदर पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी का संघर्ष और खुलकर सामने आ सकता है। कुछ वरिष्ठ नेता इस निर्णय को निजीकरण या एक परिवार तक सत्ता सिमटने के रूप में देख सकते हैं। विपक्षी दल विशेषकर भाजपा को यह कहने का मौका मिलेगा कि वे इसे एक परिवार की पार्टी करार दें, जिससे ममता बनर्जी के उस नैरेटिव को धक्का लग सकता है जिसमें वह भाजपा को केंद्रीकरण और अधिनायकवाद का प्रतीक बताती रही हैं।
-नीरज कुमार दुबे