असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा द्वारा दिया गया बयान न केवल राज्य की जनसंख्या संरचना को लेकर चिंता जताता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि राज्य सरकार आने वाले वर्षों में इस विषय पर एक आक्रामक नीति अपनाने के मूड में है। हम आपको बता दें कि मुख्यमंत्री सरमा का कहना है कि आने वाले वर्षों में असम में मुस्लिम आबादी 50% के करीब पहुंच सकती है, जो राज्य की सांस्कृतिक पहचान, भूमि सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के लिए खतरा बन सकती है।
मुख्यमंत्री के अनुसार, 2011 की जनगणना के अनुसार असम की कुल आबादी का 34% मुस्लिम था, जिनमें 3% मूल निवासी असमिया मुसलमान हैं जबकि शेष 31% प्रवासी मुस्लिम (मुख्यतः बंगाली भाषी) हैं। यदि इसी गति से जनसंख्या वृद्धि होती रही तो 2031 या 2041 तक मुस्लिम जनसंख्या 50% तक पहुँच सकती है। मुख्यमंत्री सरमा का दावा है कि यह जनसांख्यिकीय बदलाव असम के मूल निवासियों— खासकर हिंदू आदिवासी और अन्य असमिया समुदायों को अल्पसंख्यक बना सकता है, जो कि राज्य के सांस्कृतिक, भाषाई और राजनीतिक स्वरूप को मूलरूप से बदल देगा।
हम आपको बता दें कि असम लंबे समय से “असमिया पहचान” के संरक्षण को लेकर संघर्ष करता रहा है। बंगाली भाषी मुस्लिम आबादी का बढ़ना असमिया भाषा, परंपरा और रीति-रिवाजों के लिए खतरा माना जाता है। कई क्षेत्रों में पहले ही मूल असमिया लोग अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
इसलिए मुख्यमंत्री सरमा ने साफ कहा है कि कई जिलों— जैसे धुबरी, बारपेटा, नागांव, दक्षिण सालमारा-मनकाचर में मूल निवासी अब अल्पसंख्यक हैं और उन्हें डर है कि वह अपनी जमीनें बेचकर भागने को मजबूर होंगे। इससे "सांस्कृतिक और भौगोलिक विस्थापन" की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इसके अलावा मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि बांग्लादेश में हो रहे राजनीतिक और सामाजिक बदलावों के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दरअसल, बांग्लादेश से अवैध प्रवासन लंबे समय से एक मुद्दा रहा है, जिससे राज्य में घुसपैठ, कट्टरता और जनसंख्या असंतुलन की आशंका बढ़ गई है। हम आपको यह भी बता दें कि असम सरकार ने 1 से 7 अगस्त के बीच स्वदेशी और मूल निवासी समुदायों को हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन करने की सुविधा दी है। यह कदम उन क्षेत्रों में लागू होगा जहाँ मूल निवासी अल्पसंख्यक हैं और असुरक्षित महसूस करते हैं। राज्य सरकार का कहना है कि यह फैसला स्थानीय लोगों की लंबे समय से चली आ रही माँग को देखते हुए लिया गया है। लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह कदम "सांप्रदायिक ध्रुवीकरण" को बढ़ावा दे सकता है और सामाजिक ताने-बाने को और कमजोर कर सकता है।
हम आपको यह भी बता दें कि पूर्वी असम के गोलाघाट ज़िले के उरियामघाट क्षेत्र में, जो नगालैंड की सीमा से सटा है, वहां राज्य सरकार जल्द ही निष्कासन अभियान चलाने की तैयारी में है। इससे संकेत मिलता है कि असम सरकार अब "भूमि की रक्षा" को केंद्र में रखते हुए कार्रवाई कर रही है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अवैध कब्जा और जनसंख्या असंतुलन का डर है। देखा जाये तो मुख्यमंत्री सरमा के बयान और राज्य सरकार की नीतियाँ यह दर्शाती हैं कि असम एक बार फिर उस सांस्कृतिक असुरक्षा और जनसांख्यिकीय डर के दौर में प्रवेश कर रहा है, जिसकी छाया 1980 के दशक में "आसू आंदोलन" के रूप में सामने आई थी। यह भी स्पष्ट हो रहा है कि यदि मुस्लिम आबादी की वृद्धि इसी गति से होती रही और सरकार की प्रतिक्रिया भी आक्रामक होती गई, तो यह राज्य के भीतर गहराते ध्रुवीकरण और अस्थिरता को जन्म दे सकता है। इसलिए, आवश्यकता इस बात की है कि नैतिक और संवैधानिक संतुलन बनाए रखते हुए जनसंख्या नीति, सुरक्षा नीति और सामाजिक समरसता— तीनों को एक साथ साधा जाए।
इसके अलावा, एक बात और समझनी होगी कि यदि असम में मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक हो जाती है, तो राज्य को जिन संभावित खतरों या चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, वे सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी आयामों में देखे जा सकते हैं। हम आपको बता दें कि असम एक ऐसा राज्य है जिसकी अस्मिता मुख्यतः असमिया भाषा, रीति-रिवाज और जनजातीय परंपराओं पर आधारित है। यदि बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या बंगाली भाषी प्रवासियों की होती है, तो इससे असमिया भाषा का वर्चस्व कम हो सकता है। इसका असर शिक्षा, प्रशासन, और सांस्कृतिक गतिविधियों में असमिया मूल्यों की मौजूदगी पर पड़ सकता है।
इसके अलावा, लोकतंत्र में बहुसंख्यक आबादी चुनाव परिणामों को प्रभावित करती है। यदि मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक बनता है तो वे कई निर्वाचन क्षेत्रों में राजनीतिक रूप से निर्णायक हो सकते हैं। इससे सत्ता संतुलन बदल सकता है और मूल निवासी समुदायों को लग सकता है कि उनके अधिकार और प्रतिनिधित्व कमजोर हो रहे हैं। इसके अलावा, जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि की मांग बढ़ेगी, जिससे अवैध कब्जे और जंगलों, चारागाहों तथा आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि असम के मूल निवासी, विशेषकर जनजातीय और ग्रामीण समुदाय, अपनी जमीनें बेचने और पलायन करने को मजबूर हो जाएँ।
साथ ही जब एक समुदाय की जनसंख्या तेजी से बढ़ती है और दूसरे समुदाय को हाशिये पर ले जाती है, तो सामाजिक असंतुलन और विश्वास की कमी उत्पन्न होती है। इससे सांप्रदायिक तनाव, हिंसा और सामाजिक विभाजन की संभावना बढ़ सकती है, जैसा कि कुछ क्षेत्रों में पहले देखने को मिला है। हम आपको यह भी बता दें कि असम की सीमा बांग्लादेश से लगी है। यदि मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा अवैध प्रवासियों से जुड़ा है, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा प्रबंधन के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। ऐसे में कट्टरपंथी तत्वों के घुसपैठ करने या स्थानीय मुस्लिम युवाओं को उत्तेजित करने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, बड़ी आबादी का सीधा असर स्कूलों, अस्पतालों, जल संसाधनों और रोजगार पर पड़ेगा। यदि तेजी से बढ़ती आबादी को गुणवत्ता वाली सेवाएँ नहीं मिल पाईं, तो असंतोष और अपराध की प्रवृत्ति भी बढ़ सकती है। साथ ही यदि किसी राज्य में तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव होता है, तो अनुच्छेद 355 और 256 के अंतर्गत केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने की नौबत आ सकती है। इससे राज्य की स्वायत्तता पर सवाल और संघीय ढांचे में तनाव उत्पन्न हो सकता है।
बहरहाल, असम में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाने का मतलब केवल जनगणना का बदलाव नहीं है, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक स्वरूप, सामाजिक स्थिरता और सुरक्षा तंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि मूल निवासी मुस्लिम समुदाय का राज्य में अलग स्थान है, लेकिन यदि जनसंख्या असंतुलन अवैध प्रवास, कट्टरपंथ या जनसांख्यिकीय जिहाद के कारण होता है, तो यह स्थिति गंभीर हो सकती है। समाधान इसी में है कि केंद्र और राज्य सरकारें जनसंख्या नियंत्रण, नागरिकता सत्यापन और भूमि सुरक्षा जैसे विषयों पर पारदर्शी और संवेदनशील नीति बनाएं जिससे न सामाजिक अशांति हो, न किसी समुदाय का अधिकार छिने। हम आपको यह भी बता दें कि "10 वर्षों में असम में हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएंगे" वाले अपने बयान पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सफाई देते हुए यह भी कहा है कि यह मेरा विचार नहीं है। यह जनगणना का परिणाम है। आज, 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में 34% आबादी अल्पसंख्यक है। इसलिए, यदि आप 3% स्वदेशी असमिया मुसलमानों को हटा दें, तो 31% मुसलमान असम में प्रवास कर गए हैं। इसलिए, यदि आप 2021, 2031 और 2041 के आधार पर अनुमान लगाते हैं, तो आप लगभग 50-50 की स्थिति पर आते हैं। इसलिए, यह मेरा विचार नहीं है। मैं केवल सांख्यिकीय जनगणना रिपोर्ट बता रहा हूं।