बांसुरी के जादूगर कहे जाने वाले भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया 01 जुलाई को अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं। हरिप्रसाद चौरसिया ने अपनी जिंदगी में कला के दम पर प्रसिद्धि हासिल की है। उनको अपनी कला के लिए पद्म विभूषण और पद्म भूषण समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर बांसुरी के जादूगर हरिप्रसाद चौरसिया के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 01 जुलाई 1938 को हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म हुआ था। उनके पिता चाहते थे कि वह पहलवान बने, लेकिन उनका मन संगीत में रम गया। ऐसे में परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर हरिप्रसाद चौरसिया ने महज 13 साल की उम्र एक अंजान लड़के से बांसुरी मांगकर पहली बार बजाई थी। इससे उनके जीवन की दिशा बदल दी। उनका बचपन गंगा किनारे बनारस में बीता। महज 5 साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया। जिसके बाद उनको मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
संगीत शिक्षा
हरिप्रसाद चौरसिया को राजाराम और बनारस के मशहूर बांसुरी वादक भोलानाथ प्रसन्ना ने उनको संगीत की शिक्षा दी। उन्होंने न सिर्फ शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। बल्कि शिव-हर जोड़ी के साथ लम्हे चांदनी, और सिलसिला में भी मधुर संगीत दिया। हरिप्रसाद की बांसुरी की धुन आज भी लोगों के दिलों को छूती है।
बांसुरी को दी नई पहचान
उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में बांसुरी को नया मुकाम दिया। इसके अलावा उन्होंने आकाशवाणी में काम किया और साल 1968 में बीटल्स के साथ द इनर लाइट जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट में हिस्सा लिया।
पुरस्कार और सम्मान
साल 1992 में हरिप्रसाद चौरसिया को पद्म भूषण और साल 2000 में पद्म विभूषण जैसे सम्मान मिले। साल 2021-22 में उनको गानसम्रादनी लता मंगेशकर पुरस्कार भी मिला। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया एक महान कलाकार हैं।