UP: इटावा कथावाचक विवाद पर राजनीति ठीक नहीं

UP: इटावा कथावाचक विवाद पर राजनीति ठीक नहीं

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में कथाकार की जाति पूछकर किए गए अमानवीय कृत्य से पूरा देश शर्मसार है। जहां पर जाति न पूछिए साधु की पूछ लीजिए ज्ञान की बात कही जाती हो उस देश में इस प्रकार की घटना हिन्दू समाज के माथे पर कलंक है। विचार के आधार पर यदि आचरण नहीं है तो हमारी तत्व निष्ठा व्यर्थ है। अगर सभी संतानें ईश्वर की हैं तो ऊंच नीचता की भावना नहीं होनी चाहिए। 

21 जून को इटावा जिले में बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव मे कथा कहने गये कथावाचक मुकुट मणि यादव, सहायक आचार्य संत सिंह यादव व ढ़ोलक वादक श्यामवीर सिंह कठेरिया की बर्बरता पूर्वक पिटाई करने के बाद जबरन शिखा काटी गयी व सिर मुंडवाया गया। शिखा काटने के बाद मुख्य यजमान की पत्नी के पैरों पर नाक रगड़कर माफी मंगवाई गयी। ढ़ोलक वादक श्यामवीर सिंह कठेरिया दोनों आंखों से सूर है उसको भी मारा पीटा गया, ढ़ोलक छीन ली गयी और गंजा किया गया उस बेचारे का क्या कसूर था। कहा गया कि पंडितों के गांव में कथा कहने की हिम्मत कैसे की। निर्लज्जता की हद तो तब हो गयी जब एक महिला का मूत्र कथाकार मण्डली में शामिल लोगों के ऊपर छिड़का गया। इस घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया गया। सोचकर देखों उस समय उन लोगों के दिल पर क्या बीती होगी जो कई सालों से गांव—गांव जाकर लोगों को कथा सुनाकर धर्म का प्रचार कर रहा हो। उसके साथ इस प्रकार की अभद्रता कि मानवता भी सरमा जाय। इस प्रकार का अमानवीय कृत्य तो मुगल आक्रान्ता ही करते थे। शिखा,जनेऊ व तिलक से उन्हें ही चिढ़ होती थी। कथावाचक की शिखा औरंगजेब की ही औलादें काट सकती हैं। हिन्दू धर्म में शिखा रखने का बहुत ही महत्व है। हमारे पूर्वजों ने शिखा तिलक व जनेऊ की रक्षा के लिए अनेकों बलिदान दिए हैं। 

इस घटना से यादव व अनुसूचित समाज आक्रोशित है। समाज की भलाई चाहने वाले व्यथित हैं वहीं राजनीतिज्ञ लोगों की भावनाएं उभारकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें बैठे—बैठे समाज को बांटने का मुद्दा मिल गया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीड़ितों के घाव पर मरहम लगाने का काम किया। घटना के दूसरे दिन उन्हें सपा कार्यालय बुलाकर कथाकार की पूरी मण्डली को सम्मानित किया और 21—21 हजार रूपये भेंट किया। 50—50 हजार रूपये और देने की घोषणा की। इस बीच कुछ लोग दोषियों को बचाने की फिराक में जुट गए। महिला से कथावाचक पर छेड़खानी का आरोप लगवाकर भुक्तभोगी के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। यह आरोप किसी के गले नहीं उतर रहा है। अगर उसने छेड़खानी की तो मुंडन करने, मारपीट करने और पेशाब छिड़कने का अधिकार किसने दे दिया। अगर छेड़खान की होती तो उसे बैठाकर उसकी जाति बिरादरी की पड़ताल नहीं की जाती। निश्चित ही यह आरोपियों को बचाने का तरीका है। 

इस घटना को यादव बनाम पंडित का रूप दिया जा रहा है जो सरासर गलत है। एक समस्या के पटाक्षेप के लिए दूसरी मनगढ़ंत कहानी गढ़ना कहां तक उचित है। इससे दलित व ब्राहमणों के बीच खाई गहरी हो रही है। हिन्दू समाज में फूट डालने व जातीय संघर्ष को बढ़ावा देने वाला है। इस प्रकार के कृत्य करने वाले पण्डित हो ही नहीं सकते। सोशल मीडिया पर इस कृत्य की निन्दा हो रही है। वहीं कुछ लोग लाठियां लहराते हुए अपना आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। प्रदर्शन भी हो रहे हैं। यह एक व्यक्ति या एक जाति का अपमान नहीं बल्कि सनातन का अपमान है। सनातन की सांस्कृतिक एकता पर आघात किया गया है।

वैसे भी अनुसूचित समाज ने कथा व भागवत का आयोजन करना लगभग बंद ही कर दिया है। ओबीसी समाज से जुड़ी मौर्य व पाल समेत कई जातियां में भी इस प्रकार के आयोजन बहुत कम हो गए हैं। यह सब जातियां बुद्ध की अनुगामी बन रही है। ऐसे ही होता रहा तो समाज का एक बड़ा वर्ग हमसे अलग हो जायेगा। 

हमारे पूर्वजों ने कठोर साधना व तपस्या कर समरस समाज रचना का निर्माण किया। कैसे हमें रहना है समाज में कैसे आचरण करना है यह परिवार में हमें सीखने को मिलता है। 

भीष्म पितामह धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि सबको एक सूत्र में पिरोने वाला धर्म ही है। जो सबको आपस में जोड़ता है वही धर्म है। 

सर्वपंथ समादर का भाव हिन्दू चिंतन की विशेषता है। पूजा पद्धति के आधार पर भी भेदभाव नहीं करना चाहिए। धर्म का संरक्षण करने वाले मौन क्यों? ऐसा तो है नहीं कि ब्राह्मण क्षत्रिय व वैश्यों का भगवान पर अधिक अधिकार है और यादव, मौर्या, पाल व चमार पासी का अधिकार कम है। 

हिन्दुत्व का अभिमान रखते हैं। राम व कृष्ण के प्रति उनके मन में भी अगाध श्रद्धा है। पिछड़े व अनुसूचित समाज में बड़ी संख्या में संत महापुरुष पैदा हुए हैं जिन्होंने सामाजिक एकता के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगाया। बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर ने अगस्त 1927 में अंबा देवी मंदिर अमरावती में प्रवेश सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिन्दुत्व जितनी स्पृश्यों की संपत्ति है, उतनी ही अस्पृयों की भी। हिन्दुत्व की प्राण प्रतिष्ठा वशिष्ठ जैसे ब्राहामणों ने, कृष्ण जैसे क्षत्रियों ने हर्ष जैसे वैश्यों ने तथा तुकाराम जैसे शूद्रों ने की है।

काशी विद्वत परिषद ने कहा है ‘जो शास्त्रों को जानते है, भक्ति भाव, सत्यनिष्ठ, ज्ञानवान और जानकार है उन्हें कथा कहने का अधिकार है। इसमें जाति भेद नही है, क्योंकि जो ज्ञानी है वही, पंडित या ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारीलाल शर्मा ने कहा कि कथावाचक कौन होगा, इसके लिए शास्त्रों में जाति के आधार पर भेद नही है। योग्यता है तो कोई भी कर सकता है।

इटावा की घटना के साथ हिन्दू समाज का मान सम्मान और स्वाभिमान जुड़ा है। इस कृत्य से सम्पूर्ण हिन्दू समाज कलंकित हुआ है। 

जो समाज देश व धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से संघर्ष किया। अस्पृश्यता का दंश झेलते हुए कंगाली व भुखमरी में रहकर अपमान व तिरस्कार सहा। अपना सब कुछ दांव पर लगा कर जुल्म सहना स्वीकार किया लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। विषमता व अस्पृश्यता आज भी विद्यमान है। वह समाज आज भी अपमानित हो रहा है। योग्यता प्राप्त युवाओं को भी अवसर नहीं मिल रहे हैं। उनके साथ भेदभाव हो रहा है।  हमारे पूर्वजों से कुछ गलतियां हुई थी जिनका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं अगर इस समय इस प्रकार की गलती करेंगे तो आने वाली हमारी पीढ़ियां भुगतेंगी।  

इस प्रकार का कृत्य घोर निन्दनीय है। कुछ लोग इस प्रकार के कृत्य करने वालों की आलोचना करने के बजाय उनका बचाव कर रहे हैं। इस प्रकार की घटना में राजनीति करना सामाजिक एकता के लिए बाधक है। इस घटना की आड़ में यादव ब्राह्मण के बीच विवाद खड़ाकर समाज में जातीय विद्वेस पैदा करने का प्रयास हो रहा है। हिन्दू समाज में व्याप्त ऊंच नीच की भावना राष्ट्र के लिए नितान्त घातक है। हिन्दू एकता कमजोर हुई तो राष्ट्र कमजोर हो जायेगा। इसलिए समता व समरसता युक्त आचरण ही सभी समस्याओं का समाधान है।

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