श्रम शक्ति के समक्ष बढ़ते तापमान का संकट

श्रम शक्ति के समक्ष बढ़ते तापमान का संकट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ की एक रिपोर्ट, कार्यस्थल पर गर्मी: सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए निहितार्थ में पाया गया है कि गर्मी एक मूक हत्यारा है जो दुनिया भर में बढ़ती संख्या में श्रमिकों के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरा बन रही है। भारत मई से ही हीटवेव का सामना कर रहा है। उत्तर भारत के कई राज्यों में अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। ऐसा लग रहा है मानो आग बरस रही हो! मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग प्रति दशक 0.26 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रही है। शहरों में जब लोग एसी के रिमोट से टेंपरेचर ऊपर-नीचे कर रहे होते हैं, उसी दौरान मजदूर कहीं खेत या किसी घर की दीवारों की ईंट उठाते हुए पसीना बहा रहे होते हैं।

इस धधकते, तपते मौसम में औद्योगिक, निर्माण से लेकर रेस्तराओं और गोदामों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए कार्य करना आसान नहीं है। हालांकि सबसे बड़ा संकट खुले में काम करने वाले श्रमिकों के लिए है। देश की करीब 90 फीसदी श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ी है। ज्यादातर मामलों में इन श्रमिकों को चिलचिलाती धूप, बारिश, आंधी-तूफान के बीच खुले में काम करना पड़ता है। उनके लिए न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम। ऐसे में इन किसानों, श्रमिकों को हर दिन अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए खतरों से दो-चार होना पड़ता है। 

थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर यानी सीईईडब्ल्यू ने मई 2025 में एक स्टडी प्रकाशित की, जिससे पता चलता है कि भारत के 57 फीसदी ज़िले, जिनमें देश की लगभग 76 फीसदी  आबादी रहती है, मौजूदा समय में भयानक गर्मी की चपेट में हैं।


लेबरिंग थ्रू द क्लाइमेट क्राइसिस नाम से एक रिपोर्ट वर्कर्स कलेक्टिव फॉर क्लाइमेट जस्टिस - साउथ एशिया और ग्रीनपीस इंडिया ने तैयार की है जो असंगठित क्षेत्र के  श्रमिकों  की गर्मी से जुड़ी चिंताओं पर रोशनी डालती है। इसमें अनुमान लगाया गया है कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की आमदनी में 19 फीसदी की कमी आती है और भीषण गर्मी उन्हें कठिन विकल्पों में से चुनाव करने को मजबूर करती है। यानी या तो वो ख़ुद को सुरक्षित करने का जतन करें या आजीविका कमाएं। इस रिपोर्ट में ये भी रेखांकित किया गया है कि गर्मी सिर्फ़ आजीविका पर ही असर नहीं डालती बल्कि श्रमिकों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालती है।


वन अर्थ द्वारा 2022 में 68 देशों में किए गए अध्ययन जिसका शीर्षक राइजिंग टेम्परेचर इरोड ह्यूमन स्लीप है, के अनुसार विश्व स्तर पर लोगों की नींद प्रभावित हुई, जिससे पता चला है कि गर्म तापमान की वजह से लोग कम नींद ले पाते हैं। बुजुर्ग, महिलाएं और कम आय वाले देशों के लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। 2099 तक, बढ़ता तापमान एक साल में प्रति व्यक्ति की 50-58 घंटे की नींद कम कर सकता है।


गर्मी की वजह से मजदूर दिन भर काम नहीं कर पा रहे हैं। लगातार बढ़ती गर्मी से लोगों का रोजगार भी प्रभावित हो रहा है। आइएलओ की 2019 की रिपोर्ट वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लेनेट–द इम्पैक्ट ऑफ़ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क में चेतावनी दी गई है कि भारत में हीट स्ट्रेस के कारण 2030 में 5.8 प्रतिशत काम के घंटे कम होने की उम्मीद है। अपनी बड़ी आबादी के चलते देश 2030 में 3.4 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ सकती हैं।


विश्व बैंक की 2022 की एक और रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक, पूरे भारत में सालाना 16 से 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के घातक गर्मी की चपेट में आने की संभावना है। अध्ययन बताते हैं कि भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 55 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। गर्मी की चपेट में आने से 2021 में भारतीयों के बीच 167.2 बिलियन संभावित श्रम घंटे का नुकसान हुआ। इसकी वजह से देश की जीडीपी के लगभग 5.4 प्रतिशत के बराबर आय का नुकसान हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय शहर जलवायु पैटर्न में होने वाली तब्दीलियों के प्रति तेजी से संवेदनशील होते जा रहे हैं, जिससे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को बड़ा खतरा है।


इस संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप बेहद महत्वपूर्ण है। आयोग ने राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि वे कमजोर लोगों, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, बाहरी कामगारों, बुजुर्गों, बच्चों और बेघर लोगों की सुरक्षा के लिए तत्काल एहतियाती कदम उठाएं, जो पर्याप्त आश्रय और संसाधनों की कमी के कारण जोखिम में हैं। आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वी. रामासुब्रह्मण्यन ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी द्वारा भीषण गर्मी और लू के कारण होने वाली मौतों की रपट का संज्ञान ले और राज्यों को निर्देश दे।


जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान एक ऐसी सच्चाई है जिसे आज चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता। देखा जाए तो यह बढ़ता तापमान उन मेहनतकश लोगों का कहीं ज्यादा इम्तिहान ले रहा है जो कड़ी धूप और खुले आकाश तले पसीना बहाने को मजबूर हैं। इसकी पुष्टि अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी नई रिपोर्ट ‘इंश्योरिंग सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क इन चेंजिंग क्लाइमेट’ में भी की है। रिपोर्ट का कहना है कि अपने जीवन में काम के दौरान किसी न किसी मोड़ पर 241 करोड़ श्रमिकों को भीषण गर्मी का सामना करने को मजबूर होना पड़ेगा। इसका मतलब है कि दुनिया के 71 फीसदी श्रमिक या तो बढ़ते तापमान की वजह से गर्मी की मार झेल रहे हैं या उन्हें अपने काम के दौरान कभी न कभी इसका सामना करना पड़ेगा।


एनसीआरबी की रपट के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच गर्मी और लू के कारण देश में 3798 लोगों की मौतें हुईं। मानवाधिकार आयोग ने राज्यों को जारी पत्र में लिखा है कि गर्मी और लू की लहरों के प्रभाव को कम करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए के दिशा-निर्देशों का प्रभावी तौर पर पालन करना चाहिए, ताकि संभावित नुकसान को रोका जा सके।


बहरहाल बीते कई वर्षों से प्रशासन ने मौसम की चरम स्थितियों में नियोक्ताओं के लिए कुछ सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। मसलन-ऐसे तपतपाए दिनों में दोपहर 12.30 बजे से सायं 4.30 बजे तक खुले में काम कराने पर रोक लगाई गई है। कामगारों के लिए छायादार जगह और ठंडा पेयजल भी होना अनिवार्य है। महानगरों और बड़े शहरों में बिजली की आपूर्ति पहले की अपेक्षा सुधरी है, लिहाजा काम करने की जगह भी पंखे की मौजूदगी होने लगी है, लेकिन गांव-कस्बों में अब भी घंटों बिजली के कट लगाए जा रहे हैं, वहां आम आदमी और कामगार दोनों ही परेशान हैं।


संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक, "अगर कोई एक चीज है जो हमारी विभाजित दुनिया को एकजुट करती है, तो वह यह है कि हम सभी को गर्मी का एहसास हो रहा है। पृथ्वी हर जगह, हर किसी के लिए गर्म और अधिक खतरनाक होती जा रही है। हमें बढ़ते तापमान की चुनौती का सामना करना चाहिए-और मानवाधिकारों के आधार पर श्रमिकों के लिए सुरक्षा बढ़ानी चाहिए।"


 -डॉ. आशीष वशिष्ठ  

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