31 साल तक जिगरी दोस्त रहे दो देश कैसे बन गए एक-दूसरे के जानी दुश्मन, कौन रुकवा सकता है ईरान-इजरायल की जंग

31 साल तक जिगरी दोस्त रहे दो देश कैसे बन गए एक-दूसरे के जानी दुश्मन, कौन रुकवा सकता है ईरान-इजरायल की जंग

कितना अच्छा होता कि काश दुनिया के तमाम बड़े झगड़े प्रेम से सुलझाए जा सकते। तब दुनिया को बेमतलब खून खराबे की जरूरत नहीं होती। फिर बात वहीं आ जाती है कि ऐसा होता तो क्या होता। 13 जून की सुबह खबर आई कि ईरान की राजधानी तेहरान में जबरदस्त धमाका हुआ है। कुछ देर बाद पता चला कि तेहरान से 220 किलोमीटर दूर नतांज इलाके में भी हमला हुआ है। नतांज में ईरान की सबसे बड़ी परमाणु लैब थी। देखते ही देखते पूरे ईरान से इस तरह के हमलों की खबर आने लगी। नतांज के अलावा तबरीज, कर्मंशा, अराक, तेहरान, इश्फान के मिलिट्री बेस पर इजरायल ने ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। इन हमलों में ईरान के आर्मी चीफ, चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ समेत ईरान के सभी टॉप ऑफिसर्स मारे गए। इन हमलों में ईरान के 6 न्यूक्लियर साइंटिस्टों को भी मार दिया गया। सुबह होने पर इजरायली पीएम नेतन्याहू का बयान आया कि ईरान न्यूक्लियर बम बनाने से केवल 15 दिन दूर था। अगर हम हमला नहीं करते तो ईरान न्यूक्लियर बम बना लेता और इससे हमारे वजूद को खतरा हो जाता। जवाब में ईरान ने भी इजरायल पर ताबड़तोड़ मिसाइल दागना शुरू कर दिया। ईरान के इस हमले में इजरायल पर गिरी भी है। लगभग पूरी जनता अंडरग्राउंड पार्किंग में चली गई है। जंग के इस पागलपन को दुनिया अपने अपने सुविधा के हिसाब से देख रही है। दूसरी तरफ जंग के शौकीन बयानबाजी में मशगूल हैं। ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर लिखा कि मैंने तो ईरान से 60 दिनों के भीतर डील करने को कहा था और 61वां दिन हो गया डील नहीं हुई। अब दूसरा मौका है। नेतन्याहू ईरान के लोगों के नाम अपील जारी करते हुए कह रहे हैं कि रिजीम चेंज करें। ईरान धमकी दे रहा है कि पूर्व की तरह इजरायल पर दागी गई ईरानी मिसाइल्स को अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस ने रोका तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में बात सीधे जंग तक पहुंच चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं, कभी दुनिया इन्हीं दोनों देशों की दोस्ती की मिसाल देती थी। समझते हैं कैसे जिगरी दोस्त आज जानी दुश्मन बन गए। 1948 से 70 के दशक का दौर 1948 में जब इजरायल बना, तो ज्यादातर मुस्लिम देशों ने उसे मान्यता नहीं दी। लेकिन ईरान, जो कि एक शिया मुस्लिम देश है। उसने इजरायल को खुलकर मान्यता तो नहीं दी, लेकिन पीठ पीछे दोस्ती जरूर रखी। 1950-70 के दशक में जब ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सरकार थी, तब इजरायल ने ईरान को हथियार दिए। ईरान ने इजरायल को तेल दिया। दोनों देशों की खुफिया एजेसियों ने एक साथ काम किया। इस्लामिक क्रांति के बाद शुरू हुई रिश्तों में खटास 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई और शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता से हटाकर आयतुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में एक धार्मिक सरकार बनी। वही दौर था, जव पहली बार इजरायल को दुश्मन घोषित कर दिया गया। इजरायल के दूतावास को बंद करके उसे फिलिस्तीनी संगठन पीएलओ को दे दिया गया। इजरायल को इस्लाम का दुश्मन घोषित किया गया। तब ईरान ने हिजबुल्ला, हमास को मदद देनी शुरू की। आज की दुश्मनी की शुरुआत उसी दौर से हुई थी। बैकडोर से कारोबार जारी रहा दुश्मनी के बीच भी पीछे से गुप्त कारोबार चलता रहा। 1980 में जब ईरान और इराक के बीच जंग शुरू हुई, तो इजरायल ने सोचा कि इराक ज्यादा खतरनाक है। इकॉनमिक टाइम्स के मुताबिक, अमेरिका और इजरायल दोनों ने चुपचाप ईरान को हथियार सप्लाई किए। यह कहानी बाद में ईरान कॉन्ट्रा अफेयर के नाम से मशहूर हुई। बदले में अमेरिका के बंधक छुड़ाए गए और निकारागुआ में कम्युनिस्टो से लड़ रहे विद्रोहियों को पैसा पहुंचाया गया। 1990 के दशक में न्यूक्लियर प्रोग्राम दूरी बढ़ी 1990 के दशक से ईरान ने न्यूक्लियर प्रोग्राम शुरू किया और इजरायल को लगा कि ईरान भविष्य में परमाणु हथियार बना सकता है। तब से इजरायल ने ईरान को अस्तित्व के लिए खतरा मानना शुरू कर दिया। ईरान ने हमास, हिजबुल्ला और हुथी जैसे गुटों को ताकतवर बनाया। इजरायल ने भी अरव देशों से नजदीकियां बढ़ाई जैसे, UAE, बहरीन आदि। दोनों देशों के बीच साइबर अटैक, ड्रोन हमला, समुद्री हमले जैसे छुपे युद्ध चलने लगे। खुलकर सामने आ गई दुश्मनी 2024 में गाजा युद्ध के दौरान ईरान ने इजरायल पर मिसाइल और ड्रोन दागे। इजरायल ने भी जवाब दिया, पर सीमित स्तर पर। अब इजरायल ने पहली बार ईरान की जमीन पर जाकर बड़े हमले किए। न्यूक्लियर फैसिलिटीज को निशाना बनाया। मिसाइल फैक्ट्रियों को उड़ाया। ईरान के टॉप कमांडरों को मार डाला। ये साफ है कि अब ईरान और इजरायल के बीच खुली जंग का खतरा मंडरा रहा है। क्या ये दुश्मनी खत्म होगी कभी ईरान के साथ रहने वाले हिजबुल्ला, हमास और हूती जैसे संगठन इजरायल पर हमले तेज कर सकते हैं। अमेरिका, अरब देश और पूरी दुनिया टेंशन में है। अगर मामला नहीं संभला, तो ये जंग पूरे मिडिल ईस्ट को चपेट में ले सकती है। इजरायल ईरान को न्यूक्लियर ताकत नहीं बनने देगा। दूसरी तरफ, ईरान इजरायल के वजूद को ही नहीं मानता है। दोनों की विचारधारा, लक्ष्य और गठबंधन बिल्कुल उलट हैं। पुतिन-ट्रंप या मोदी करेंगे पहल ईरान की ओर से इसका दायरा और बढ़ाने वाला अगला कदम जलडमरूमध्य पर कब्जे का हो सकता है, जिससे होकर दुनिया का 20% फ्यूल गुजरता है। तेल की कीमतें अभी ही उछाल मार चुकी हैं तो खाड़ी की नाकेबंदी से अमेरिका को विश्व रक्षक सुपरमैन की तरह लड़ाई में कूदने का तर्क मिल जाएगा। इससे लड़ाई पूरी तरह एकतरफा हो जाएगी, लेकिन थमने तक दुनिया का काफी नुकसान हो चुका होगा। क्रेमलिन ने इजरायल के हमले को ‘बिना उकसावे के अवैध सैन्य कार्रवाई’ बताया और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का खुला उल्लंघन करार दिया। रूस ने कहा कि इस पूरे तनाव की जड़ ‘पश्चिमी देशों की ईरान विरोधी हिस्टीरिया’ है। ऐसे में पुतिन और ट्रंप इसके पहले ही आग बुझाने की कोशिश कर सकते हैं। उनका आपस का दोस्ताना संवाद फिलहाल दुनिया के लिए अकेली उम्मीद है, हालांकि यूरोपीय संघ को और कुछ हद तक चीन को भी यह बहुत अच्छा नहीं लगेगा। वहीं इस पूरे विवाद में नरेंद्र मोदी भी एक बड़ा फैक्टर हैं। मिडिल ईस्ट में भारत की भूमिका भारत ने हमेशा मिडल ईस्ट में एक संतुलित भूमिका निभाई है। पीएम मोदी का नेतन्याहू से संवाद एक तरफ इजरायल को डैमेज कंट्रोल का मौका देता है, वहीं दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को और मज़बूत करता है। भारत ने हिंसा की आलोचना किए बिना अपनी ‘शांति’ की भूमिका स्पष्ट कर दी।

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