विशेष एनआईए अदालत ने महाराष्ट्र के नासिक जिले के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील शहर मालेगांव विस्फोट मामले में करीब 17 साल बाद सुनवाई पूरी होने के बाद शनिवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। 29 सितंबर, 2008 को मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण के फटने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। अभियोजन पक्ष ने शनिवार को मामले की सुनवाई के अंत में कुछ उद्धरणों के साथ अपनी अंतिम लिखित दलीलें दाखिल कीं, जिसके बाद विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने मामले को फैसले के लिए 8 मई तक के लिए स्थगित कर दिया।
मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 अभियोजन गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, भाजपा नेता प्रज्ञा ठाकुर- मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मुकदमा चल रहा है। 2011 में एनआईए को सौंपे जाने से पहले मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी।
एनआईए ने मामले को अपने हाथ में लेने के बाद 2016 में ठाकुर और तीन अन्य आरोपियों- श्याम साहू, प्रवीण टकलकी और शिवनारायण कलसांगरा को क्लीन चिट देते हुए आरोपपत्र दाखिल किया था। एनआईए ने कहा था कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है और उन्हें मामले से बरी किया जाना चाहिए। हालांकि, एनआईए अदालत ने साहू, कलसांगरा और टकलकी को बरी कर दिया और फैसला सुनाया कि साध्वी को मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। विशेष अदालत ने 30 अक्टूबर, 2018 को सात आरोपियों के खिलाफ सख्त गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आरोप तय किए थे।