जिन्ना की मुस्लिम लीग और केरल की मुस्लिम लीग में क्या है कनेक्शन? नेहरू भी थे जिसके खिलाफ वो है कितनी धर्मनिरपेक्ष?

जिन्ना की मुस्लिम लीग और केरल की मुस्लिम लीग में क्या है कनेक्शन? नेहरू भी थे जिसके खिलाफ वो है कितनी धर्मनिरपेक्ष?

राहुल गांधी द्वारा केरल में ग्रैंड ओल्ड पार्टी की सहयोगी मुस्लिम लीग को पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष पार्टी के रूप में संदर्भित करने के बाद शुक्रवार को भाजपा और कांग्रेस के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया। फ्लैशप्वाइंट वाशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत के दौरान गांधी परिवार की टिप्पणी थी। एक रिपोर्टर ने राहुल गांधी से केरल में मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस के गठजोड़ के बारे में उसकी धर्मनिरपेक्षता की हिमायत करने और भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति का विरोध करने के संदर्भ में पूछा गया। जिस पर राहुल ने कहा कि मुस्लिम लीग पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। मुस्लिम लीग के बारे में कुछ भी गैर-धर्मनिरपेक्ष नहीं है। मुझे लगता है कि (जिसने सवाल पूछा) उसने मुस्लिम लीग की को ठीक से पढ़ा नहीं है। कांग्रेस नेता की प्रतिक्रिया की एक क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। भाजपा ने वीडियो को शेयर करते हुए गांधी केबयान को अपमानजनक और भयावह बताते हुए निशाना साधा। बीजेपी ने दावा किया कि अपने पूर्व लोकसभा क्षेत्र वायनाड में स्वीकार्य रहने की मजबूरी के कारण उन्होंने मुस्लिम लीग को एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताया है। 

बीजेपी मीडिया सेल के हेड अमित मालवीय ने ट्वीट करते हुए कहा कि जिन्ना की मुस्लिम लीग, जो धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार पार्टी है। राहुल गांधी के अनुसार एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। राहुल गांधी भले ही कम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन यहां वे कपटी हैं... वायनाड में स्वीकार्य बने रहना भी उनकी मजबूरी है। वही कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भाजपा के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि अनपढ़ हो भाई क्या आप अनपढ़ हैं? केरल की मुस्लिम लीग और जिन्ना की मुस्लिम लीग में फ़र्क़ नहीं मालूम?  जिन्ना वाली मुस्लिम लीग वो जिस के साथ तुम्हारे पूर्वजों ने गठबंधन किया।  दूसरी वाली मुस्लिम लीग वो, जिसके साथ भाजपा ने गठबंधन किया था। इसके साथ ही पवन खेड़े नें बीजेपी ने नागपुर पर शासन करने के लिए मुस्लिम लीग को शामिल किया वाली शीर्षक वाली टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर का लिंक भी पोस्ट किया। जानकारी के लिए आपको बता दें कि मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और केरल में स्थित इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) दो पूरी तरह से अलग और असंबंधित पार्टियां हैं। आईयूएमएल केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का पारंपरिक सहयोगी है। ऐसे में आइए जानते हैं जिन्ना वाली मुस्लिम लीग का इतिहास क्या है और भारतीय मुस्लीम लीग के बीच क्या कोई समानता है। इसके साथ ही जानते हैं कि राहुल ने जिसे सेक्यूलर बताया है उसकी सच्चाई क्या है। 

क्यों किया गया ब्रिटिश राज में मुस्लिम लीग का गठन

भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए साल 1906 में मुस्लीम लीग का गठन किया गया। इस लीग का गठन ढाका के नबाव आगा खान और मोहसिन उल के नेतृत्व में किया गया था। आपको बता दें कि इस लीग का मुख्य उद्देश्य मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा को प्रोत्साहित करना। उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी जरूरतों को सरकार के सामने पेश करना और अन्य समुदायों के प्रति विरोध की भावना को कम करना था। वैसे गठन के दो साल बाद 1908 के अमृतसर में मुस्लिमों के लिए एक अलग निर्वाचन मंडल की मांग उठी, जिसे 1909 में मार्ले मिंटो सुधारों द्वारा पूरा कर लिया गया। देश में हिन्दुओ और मुस्लिमों के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था। इसी को देखते हुए 1938 में महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना ने इस तनाव को कम करने के उपाय निकालने के लिए बातचीत शुरू की। लेकिन इस बातचीत का असर भी जल्द ही खत्म हो गया। दिसंबर में लीग द्वारा मुसलमानों के उत्पीड़न की जांच के लिए समिति बना दी गई। 1944 में पाकिस्तान की मांग पर महात्मा गांधी और जिन्ना के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए। दोनों ही अपनी बात को पहले मनवाना चाहते थे। जहां एक तरफ जिन्ना को पाकिस्तान पहले चाहिए था और आजादी बाद में जबकि गांधी का कहना था कि आजादी पहले मिलनी चाहिए। 1946 में मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना से खुद को अलग कर लिया। फिर आंदोलन छिड़ गया और पूरे देश में मार-काट मच गई। जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन वाली घोषणा के बारे में तो आप सभी ने पढ़ा होगा। 29 जनवरी को मुस्लीम लीग ने संविधान सभा को भंग करने की मांग की। फरवरी में पंजाब में भी सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो गई। 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर ‘ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ कर दिया गया।

केरल की मुस्लिम लीग कितनी अलग

भारत में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 10 मई 1948 को अपने अस्तित्व में आई। इसकी शुरुआत राजनीति दल के तौर पर हुई। हालांकि बांग्लादेश और पाकिस्तान की मुस्लिम लीग से तुलना करें तो भारत की आईयूएमएल का इतिहास काफी अलग रहा है। इसे चुनाव आयोग ने मान्यता दी और इस पार्टी ने केरल में सरकार भी बनाई है। आईयूएमएल ने चुनाव लड़ा औऱ लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। आईयूएमएल केरल का जाना-माना राजनीतिक दल है और इसे रीजनल पार्टी का दर्जा प्राप्त है। केरल के कई हिस्सों में इस पार्टी का गहरा प्रभाव है। डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पहली और दूसरी यूपीए सरकारों में पार्टियां। साठ के दशक के मध्य से केरल और पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों सहित अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों और उनके द्वारा चलाई गई सरकारों के साथ अपने लंबे समय के जुड़ाव में, मुस्लिम लीग अपने स्वतंत्रता-पूर्व अतीत से विरासत में मिले दागों को धोने में सक्षम रही।  

कितनी सेक्यूलर है भारत की मुस्लीम लीग?

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार आईयूएमएल केवल मुस्लिमों की पार्टी नहीं है। इसमें दूसरे धर्म के लोग भी जुड़े हैं। केरल के डी रघुनाश पनावेली का कहना है कि पहले मुझे भी ये लगता था कि मुस्लिम लीग मुसलमानों की पार्टी है। लेकिन ऐसा नहीं हैं। जब मैंने इसके बारे में जाना तो पता चला कि ये दल मुस्लिम ही नहीं दलित, पिछड़ी और आदिवासी समुदाय को भी लेकर चलता है। 12 साल पहले इस पार्टी से जुड़ने वाले पनावेली का कहना है कि उन्हें कबी इस दल ने निराश नहीं किया। 

केरल की मुस्लिम लीग का जिन्ना वाली मुस्लिम लीग ने कनेक्शन?

आजादी और देश के बंटवारे के बाद जिन्ना की मुस्लिम लीग के नेता रह चुके मुहम्मद इस्माइल ने पार्टी को फिर से संगठित करने का बीड़ा उठाया। 10 मार्च 1948 को मद्रास में बुलाई बैठक में 33 नेता शामिल हुए। लेकिन इस्माइल के कुछ सहयोगियों ने मुस्लिम लीग के पुर्नगठन को लेकर अपना विरोध जाताया था। आखिरकार 1 सितंबर 1951 को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग औपचारिक तौर पर अस्तित्व में आ गई। 

नेहरू के मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित करने पर क्या थे विचार

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू आजादी के बाद मुस्लिम लीग के पुनर्जीवित किए जाने के विचार के खिलाफ थे। मलयाला मनोरमा की अंग्रेजी बेवसाइल ने मार्च में आईयूएमएल की स्थापना के 75 साल पूरे होने पर प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री और भारत के सबसे सेक्युलर नेता जवाहर लाल नेहरू भी भारत में मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित किए जाने के खिलाफ थे। उन्होंने इस बाबत तत्कालीन जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से कहा भी था कि वो मुहम्मद इस्माइल को इस विचार यानी मुस्लिम लीग का पुनर्गठन को छोड़ने की सलाह दें। 

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