बिहार निकाय चुनाव: पंगु बनती संस्थाएं और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती सरकार की योजनाएं पंगु बनती संस्थाएं और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती सरकार की योजनाएं

बिहार निकाय चुनाव: पंगु बनती संस्थाएं और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती सरकार की योजनाएं पंगु बनती संस्थाएं और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती सरकार की योजनाएं

बिहार में तीसरे और अंतिम चरण की अधिसूचना जारी कर दी गई है। नामांकन शुरू हो चुका है और नौ जून को शहर की सरकार चुनने के लिए मतदाता वोट डालेंगे। जबकि 11 जून को मतगणना की जाएगी। इस चरण में 31 शहरों में वोटिंग होगी। जिसमें दो नगर निगम मधुबनी और सहरसा भी शामिल हैं। तीसरे चरण में अधिकतर उन जगहों पर मतदान होना है, जिन्हें हाल ही में अपग्रेड किया गया है। जैसे कि मधुबनी और सहरसा, ये दोनों शहर पहले नगर परिषद थे जिन्हें अपग्रेड करने के बाद नगर निगम बना दिया गया है। जाहिर-सी बात है कि इन दोनों शहरों के नगर निगम बनने के बाद इसमें वे गांव भी शामिल कर लिए गए हैं जो इन शहरों के आसपास थे। परिसिमन के बाद कुछ दिनों तक हो हंगामा चला। विभिन्न दलों और नेताओं ने अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेकने की कोशिश की। गांवों को शहर बनाने के प्रयास का विरोध किया गया। फलस्वरूप इन गांवों में दो साल पहले पंचायत चुनाव करबा लिया गया। अब दो साल बाद इन गांवों में शहर की सरकार चुनने के लिए फिर से वोट डाले जाएंगे। ऐसे में यह सवाल उठना तो लाजिमी ही है कि जब इन गांवों को नगर निगम में शामिल ही करना था तो इनमें पंचायत चुनाव क्यों करबाया गया?

इन पंचायतों के मुखियाजी जो लाखों-करोड़ों खर्च करने के बाद मुखिया बने थे अब इस बात का रोना रो रहे हैं कि पंचायत चुनाव में नाहक इतने रुपये खर्च कर लिए। यह घाटे का सौदा हो गया। सो अब वे मेयर व उप मेयर पद के लिए ताल ठोंक रहे हैं। धुआंधार प्रचार चल रहा है। उम्मीद यही है कि पंचायत चुनाव में जो घाटे का कारोबार हुआ था, निकाय चुनाव जीतने पर उसकी भरपाई हो जाएगी। मुनाफा हो या न हो लेकिन मूलधन तो वापस आ ही जाएगा। लेकिन यह राह भी इतनी आसान नहीं। क्योंकि कुछ लोग तो साल भर से निकाय चुनाव की बाट जोह रहे हैं और जनता के बीच जाकर समाजसेवी बने हुए हैं। यह अलग बात है कि चुनाव में हार या जीत होने के बाद उन्हें फिर इस समाज से कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

अब जब चुनाव की बात चली है तो एक वाकया याद आ रहा है। पंचायत चुनाव का समय था। झंझारपुर से सटी हुई एक पंचायत में चुनाव से ठीक एक दिन पहले रात को एक मुखिया प्रत्याशी के समर्थक मतदाताओं के घर पहुंचने लगे और उन्हें पांच-पांच सौ रुपये का नोट थमाकर अपने नेताजी के समर्थन में आशीर्वाद देने की गुजारिश की। यह जानकारी दूसरे प्रत्याशी को लगी तो उन्होंने भी अपने समर्थकों को वहां भेजा और अपनी तरफ से हजार-हजार रुपये मतदाताओं के बीच बंटवाए। तीसरे प्रत्याशी से भी रहा नहीं गया और उनके समर्थकों ने मतदाताओं के बीच पंद्रह-पंद्रह सौ रुपये बंटवाए। रुपये तो भला किसी को बुरा नहीं लगता, सो मतदाताओं ने भी किसी को मना नहीं किया और सबको अपना बहुमूल्य वोट देने का आश्वासन दिया। सुबह में उनके वोट हजार रुपये बांटने वाले प्रत्याशी के पक्ष में गिरा। कुछ मतदाताओं ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उक्त महिला प्रत्याशी के टैटू ने उन्हें आकर्षित किया। और जब यह पता चला कि उक्त महिला टैटू बनवाने के लिए कभी-कभार दिल्ली जाया करती हैं तो उनसे रहा नहीं गया। फिलहाल यह पंचायत अब झंझारपुर नगर परिषद में शामिल कर ली गई है और अब ये तीनों प्रत्याशी फिर से चुनाव मैदान में हैं।

बिहार में पंचायत की सरकार हो या नगर की सरकार, सबको मुख्यमंत्री की सात निश्चय योजना को पूरा करना है। कुछ जिलों के मुखिया संघ ने अलबत्ता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पंचायती राज व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया लेकिन वे भी इस योजना के खिलाफ बोल नहीं सके। क्योंकि उन्हीं में से बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि यह सात निश्चय योजना सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। खासकर नल जल योजना तो कामधेनु है। इससे मुखिया हो या वार्ड मेंबर, सभी लाभान्वित हुए हैं। जनता को इस योजना से कुछ खास लेना-देना नहीं है। क्योंकि अब बिहार के लगभग सभी गांवों के सभी घरों में चापाकल हैं, जिससे वे पानी की जरूरत पूरी कर लेते हैं। लोगों का तो साफ कहना है कि अगर यह पानी फिल्टर्ड रहता तो उन्हें कोई लोभ भी रहता लेकिन समरसिबल लगाया और पानी निकाला। फिर उसी पानी को घर-घर पहुंचा देना कौन-सी बहादुरी है। सो उन्हें कोई मतलब नहीं कि आंगन में नल लगा या नहीं, नल में जल आया वा नहीं।

जिस तरह राज्य सरकार मुख्य मुद्दे से से जी चुराने का काम कर रही है, ठीक उसी तरह पंचायत और नगर की सरकारें भी मुख्य मुद्दे से जी चुराने का काम कर रही हैं। अभी भीषण गरमी का मौसम है और जल संसाधन के मामले में समृद्ध माना जाने वाले उत्तर बिहार के कई जिलों के जलस्तर भयानक रूप से नीचे चला गया है। 70 से 75 फीसदी चापाकलों ने पानी देना बंद कर दिया है। लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। कुछ दिनों के बाद बरसात होगी और ये शहर भीषण जलजमाव की चपेट में होंगे। निकाय चुनाव के प्रत्याशी लोगों को यह दिवास्वप्न दिखा रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद वे इस समस्या का समाधान करेंगे लेकिन सत्य यही है कि वे चुनाव जीतने के बाद इस समस्या से जी चुरा लेंगे। क्योंकि किसी के पास इस समस्या के समाधान के लिए कोई रोडमैप नहीं है।

असल में नगर सरकार हो वा पंचायत सरकार, चाह कर भी इन समस्याओं के समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं कर सकती क्योंकि योजना बनाने का अधिकार इनके पास है ही नहीं। योजनाएं राज्य सरकार बनाती हैं और ये सरकारें इन योजनाओं को लागू करने का काम करती हैं। राज्य सरकार की ओर से पहले से यह तय कर दिया जाता है कि अमुक योजना में इतनी राशि हर हाल में खर्च करनी है। और योजनाओं को लागू करने वाली ये सरकारें भी खूब समझती हैं कि इन योजनाओं का धरातल पर कितना महत्व है। अपनी महत्वाकांक्षा के चक्कर में राज्य सरकार ने इन संस्थाओं को पंगु बनाने का काम किया है। जिसका कारण है कि सरकार की अन्य महत्वाकांक्षी योजनाएं भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। पंचायत की सरकारें सात निश्चय योजना के सहारे फिर से मालामाल हो रही हैं तो जिन शहरों में निकाय चुनाव हो चुके हैं, उन शहरों की सरकारें भी इन योजनाओं के सहारे मालामाल होने का प्रयास कर रही हैं। जिन शहरों में निकाय चुनाव होने हैं, उन शहरों की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं रहने वाली।


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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