New Delhi: फेसबुक से चिपके रहने वाले लोग बढ़ा रहे प्रदूषण, एक गूगल सर्च से 7 ग्राम तो एक ई-मेल से 50 ग्राम तक निकल रहा CO2

New Delhi: फेसबुक से चिपके रहने वाले लोग बढ़ा रहे प्रदूषण, एक गूगल सर्च से 7 ग्राम तो एक ई-मेल से 50 ग्राम तक निकल रहा CO2

Internet Usage And Carbon Emission: आज पर्यावरण को सिर्फ वाहनों और कल कारखानों से ही नहीं, बल्कि इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से भी नुकसान हो रहा है. इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल और मोबाइल डिवाइस की संख्या में वृद्धि से पर्यावरण में खतरनाक रफ्तार से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बढ़ रहा है.

हाल के ही एक रिसर्च में हुलासा हुआ है कि इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से पर्यावरण में हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन सालाना 4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. दुनिया भर में लोग 22 अप्रैल को विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं. तो चलिए इस अवसर पर जानते हैं कि इंटरनेट का उपयोग कैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है…

एक ईमेल से कितना प्रदूषण?

आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर एक व्यक्ति पूरे एक साल के लिए इंटरनेट का उपयोग करता है तो वो 400 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कर देता है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, एक साधारण ईमेल से 4 ग्राम और अगर ईमेल के साथ फोटो या वीडियो अटैच हो तो 50 ग्राम तक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन हो जाता है.

रिसर्च में सामने आया है कि एक बिजनेस ईमेल यूजर हर साल 135 किलोग्राम CO2 का उत्सर्जन करता है, जो कि एक कार को लगभग 300 किलोमीटर तक चलाने से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है.

गूगल सर्च भी बढ़ा रहा CO2

आप अपनी छोटी-छोटी परेशानियों का समाधान ढूंढने के लिए इंटरनेट पर सर्च करते हैं. हैरानी वाली बात है कि इंटरनेट या गूगल सर्च से भी CO2 उत्सर्जन बढ़ता है. अगर आप दिन में एक बार इंटरनेट पर सर्च करते हैं तो 7 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है. वहीं एक सर्च में 5 रिजल्ट को चेक किया जाए तो यह उत्सर्जन 10 ग्राम तक पहुंच जाता है. वहीं साल भर गूगल का इस्तेमाल करने पर तकरीबन 10-15 किलोग्राम CO2 उत्सर्जन हो जाता है.

फेसबुक ने फैलाया इतना प्रदूषण!

साल 2020 में सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म फेसबुक ने अपने उत्सर्जन के आंकोड़ को सार्वजनिक किया था. फेसबुक ने स्वीकार किया था कि उस साल कंपनी का कुल ग्रीन हाउस गैस एमिशन 38,000 मीट्रिक टन CO2 के बराबर था. कंपनी ने अपने परिचालन में 2030 तक नेट जीरो एमिशन पूरा करने का लक्ष्य रखा है.

इंटरनेट का कार्बन एमिशन से क्या नाता?

बता दें कि गूगल, यूट्यूब और तमाम वीडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स अपने कंटेंट को स्टोर करने के लिए डाटा सर्वर का इस्तेमाल करते हैं. ये डाटा सर्वर इतने बड़े होते हैं कि एक दिन में हजारों घरों की बिजली अकेले ही कंज्यूम कर जाते हैं. गूगल के सर्वर तो एक छोटे शहर की बिजली का अकेले ही खपत कर जाते हैं. साल 2020 में गूगल ने 15,439 गीगावाट बिजली की खपत की थी.

ये कंपनियां कर साल अपने सर्वर का साइज भी बढ़ा रही हैं. चूंकि आज भी बिजली को ज्यादातर कोयले या जीवाश्म ईंधन जैसे श्रोतों से तैयार किया जा रहा है, इसलिए इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल से बिजली की खपत बढ़ रही है और इस वजह से प्रदूषण भी बढ़ रहा है.


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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