New Delhi: भारत की विदेश नीति में अब दिखने लगा अमेरिका और रूस से संबंधों में संतुलन बनाए रखना

New Delhi: भारत की विदेश नीति में अब दिखने लगा अमेरिका और रूस से संबंधों में संतुलन बनाए रखना

भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी द्विपक्षीय संबंधों और निजी हितों का अधिक ध्यान रखने लगा है. रूस यूक्रेन युद्ध के बाद यह साफ तौर पर दिखा यह पश्चिमी देशों के दबाव में ना आते हुए भारत ने रूस से अपने दोस्ताना संबंध कायम रखे और उससे कच्चा तेल भी खरीदा. ये भारत की पjरंपरागत गुटनिरपेक्षता की नीति से बहुत अलग है. इस बार भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में निजी हितों को प्राथमिकता दे रहा है. रूस और अमेरिका से समान रूप से द्विपक्षीय संबंध कायम रखे है. वहीं इस साल जी20 देशों की अध्यक्षता के चलते यह काम और चुनौतीपूर्ण हो गया है.  क्या भारत यह नाजुक संतुलन बनाए रखेगा.

गुटनिरपेक्ष नीति में बदलाव?

शुरू से ही भारत का प्रयास था कि वह शीतयुद्ध का हिस्सा नहीं रहेगा. 1950 के दशक में भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रहा, लेकिन साथ ही उसने रूस के साथ भी दोस्ताना बर्ताव रखा. कई मामलों में अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय संबंध बनाए, लेकिन अतंरराष्ट्रीय मामलों में तटस्थता और गुटनिरपेक्षता कायम रखते हुए दूर रहने की नीति ही कायम रखी. पिछले एक साल से हालात बदल गए हैं.

सवाल किसके लिए अहम

भारत की इस स्थिति का विश्लेषण करते हुए ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में इसका विश्वेषण किया गया है जिसमें भारत की वर्तमान स्थितियों का आंकलन करते हुए ऐसे ही सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है. लेकिन यह सवाल भारत के लिए जितना जरूरी है उससे कहीं ज्यादा पश्चिमी देशों के साथ अमेरिका और रूस के लिए कहीं अधिक मायने रखा है.

भारत-अमेरिका संबंध

यूक्रेन संकट के बाद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा, तो क्या भारत और अमेरिका के संबंध इससे खराब हो गए. या अमेरिका  अब भारत का साथी नहीं रहा. तो ऐसा बिलकुल नहीं है. बहुत से अंतरराष्ट्रीय मामले ऐसे हैं जिनमें भारत और अमेरिका ना केवल एक मत बल्कि सहयोगी भी है. इसका सबसे बड़ा कारक चीन है. क्वाड की भारत की सदस्यता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार, जैसे कई मुद्दे हैं जो अमेरिका और भारत को एक लाती है और भारत इसके प्रति काफी उत्साहित भी रहता है.

रूस के साथ स्थिति

रूस के साथ भारत के अपने अलग तरह के संबंध हैं. भारत रूस से सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है, दोनों देशो के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं. अब हथियार के साथ तेल की खरीद में भारत रूस पर ज्यादा निर्भर होने की दिशा में जाता दिख रहा है. हां हथियार की खरीद कम जरूर हो रही है. रूस यूक्रेन विवाद के दौरान भारत का पश्चिमी देशों के दबाव में ना आने से रूस भारत के और करीब आ गया है.

भारत की नाजुक स्थिति

रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका कीएक बिजनेस इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट के सर्वे के मुताबिक जहां भारत रूस की आलोचना करने से बच रहा है, भारत में कई लोग रूस यूक्रेन संकट के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बजाय नाटो और अमेरिका को इसका जिम्मेदार मानते हैं. फिर भी मोदी इस रास्ते की नजाकत को बखूबी समझते हैं. वे रूस को भी बार बार जता चुके हैं कि भारत युद्ध के रास्ते को सही नहीं मानता है.

दूसरे देशों पर असर नहीं?

जहां तक रूस के मामले में अमेरिका का सवाल है तो दोनों देशों के लिए यह आपस में उतना अहम नहीं है. दोनों देशों के व्यापारिक संबंध बहुत ही गहरे हैं चीन से तनतनी  स्वाभाविक रूस से दोनों को करीब लाती है. चीन को रोकने के लिए अमेरिका को भारत की ज्यादा जरूरत है. इसलिए वह भारत को गैर नाटो सैन्य साझेदार का दर्जा देना चाहता है. और भारत भी अमेरिका से हथियार नहीं खरीदता ऐसा भी नहीं है बल्कि यह खरीद बढ़ ही रही है.

रिपोर्ट में माना गया है कि भारत सरकार अब अपने हितों को प्राथमिकता दे रही है रूस अमेरिका से उसके संबंध तो हैं ही ग्लोबल साउथ की भी आवाज बनता जा रहा है जबकि अभी तक उसने खुला नेतृत्व नहीं अपनाया है. भारत का नजरिया बहुल ध्रुवीय होती दुनिया में अब अंतरराष्ट्रीय विरोधाभासों को खंगालने और उनसे अपने हितों को साधने का बनता जा रहा है जिसमे द्विपक्षीय संबंध सर्वोपरि हैं. यूरोप को लेकर भी भारत की यही नीति दिखाई दे रही है.


 xfenod
yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

Leave a Reply

Required fields are marked *