स्वदेशी समुदायों के लिए अलग राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की मांग करने वाली टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी) के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में किंगमेकर के रूप में उभर सकते हैं। सभी की निगाहें त्रिपुरा के पूर्व शाही परिवार और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उनकी दो साल पुरानी पार्टी पर टिकी है। राज्य की 20 आरक्षित आदिवासी सीटों में से एक अमपिनगर में उनके हेलिकॉप्टर के उतरते ही कोई भी यह महसूस कर सकता है कि बुबागरा, जैसा कि आदिवासियों द्वारा उन्हें प्यार से बुलाया जाता है, आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल के रूप में सामने आ सकते हैं।
टिपरा मोथा का उभार
त्रिपुरा की एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने 2021 में हुए त्रिपुरा ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTADC) के चुनावों में ग्रेटर टिपरालैंड की अपनी मांग के साथ सफलतापूर्वक जीत हासिल की। ऐसा लगता है कि पार्टी के संस्थापक प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने आईपीएफटी का अधिकांश वोट हासिल कर लिया है, जिसने अलग राज्य की अपनी मांग को छोड़ कर स्वदेशी लोगों का विश्वास खो दिया है। हाल ही में घोषणा की कि उनकी पार्टी 40-45 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी, जो बीजेपी और सीपीआईएम-कांग्रेस गठबंधन दोनों के लिए बुरी खबर हो सकती है। 2019 में कांग्रेस छोड़ने के बाद सक्रिय राजनीति से ब्रेक को उन्होंने तोड़ते हुए टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी) का गठन किया। पार्टी को तिपराहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 2021 त्रिपुरा आदिवासी परिषद चुनाव जीता, सत्तारूढ़ भाजपा को हराया।
बात अगर 2018 चुनाव की करें तो बीजेपी ने 36 सीटें जीती थीं और आईपीएफटी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। जिसके बाद 60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा में गठबंधन सरकार बनाई गई थी। हालांकि, पिछले पांच वर्षों में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के पांच विधायक और गठबंधन सहयोगी आईपीएफटी के 3 विधायक अलग-अलग विपक्षी दलों में शामिल हो गए। फिर, 2022 के उपचुनाव में कांग्रेस ने अगरतला निर्वाचन क्षेत्र अपने नाम कर लिया।