नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी जांच एजेंसी द्वारा दायर किया गया आरोप पत्र (Charge Sheet) एक सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है. न्यायालय ने कहा कि आरोप पत्र को सार्वजनिक करने से अभियुक्तों और पीड़ितों के अधिकारों का हनन हो सकता है. शीर्ष अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 के तहत दायर आरोप पत्र और अंतिम रिपोर्ट को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने के अनुरोध संबंधी पत्रकार सौरभ दास की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि आरोप पत्र को वेबसाइट पर साझा करना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के विपरीत होगा. पीठ ने कहा कि आरोप पत्र एक ‘सार्वजनिक दस्तावेज’ नहीं है और इसे ऑनलाइन प्रकाशित नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने सुनवाई का व्यापक आधार नहीं होने के कारण इस जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि मामले से असंबद्ध लोगों जैसे निकायों और गैर सरकारी संगठनों को प्राथमिकी दी जाती है, तो उनका दुरुपयोग हो सकता है. वकील प्रशांत भूषण ने अदालत से कहा, ‘‘आमजन को यह जानने का अधिकार है कि कौन अभियुक्त है और किसने संबंधित अपराध किया है.’’ भूषण ने कहा कि पुलिस को अपनी वेबसाइट पर प्राथमिकी की प्रतियां प्रकाशित करने के लिए शीर्ष अदालत के निर्देश से आपराधिक न्याय प्रणाली के कामकाज में पारदर्शिता आई है.