चुनावी साल में भी बीजेपी-कांग्रेस में अनिश्चित्तता बरकरार:कांग्रेस में सीएम पद पर लड़ाई तो बीजेपी में नेतृत्व का कन्फ्यूजन, पिछले चुनावों में नहीं थे विवाद ऐसे

चुनावी साल में भी बीजेपी-कांग्रेस में अनिश्चित्तता बरकरार:कांग्रेस में सीएम पद पर लड़ाई तो बीजेपी में नेतृत्व का कन्फ्यूजन, पिछले चुनावों में नहीं थे  विवाद ऐसे

राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं मगर दोनों पार्टियों में नेतृत्व का असमंजस फिलहाल बना हुआ है। हालांकि चुनावी वर्ष को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने वर्किंग शुरू कर दी है। मगर इसके बावजूद दोनों पार्टियों में नेतृत्व के स्तर पर स्थितियां साफ नहीं होने से पार्टियों में अंदरूनी स्तर पर असमंजस और खींचतान बनी हुई है। इसका असर दोनों ही पार्टियों के कार्यक्रमों और तैयारियों पर देखने को मिल रहा है।

कांग्रेस में सीएम की कुर्सी को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लड़ाई जगजाहिर हो चुकी है। दोनों की यह लड़ाई जुलाई 2020 में हुई बगावत के बाद से लगातार चल रही है। वहीं 25 सितम्बर 2022 को हुई इस्तीफा पॉलिटिक्स के बाद यह और गहरा गई। इस बीच गुजरात-हिमाचल चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा भी राजस्थान से गुजर गई। मगर हाईकमान ने इस मसले को लेकर कोई निर्णय नहीं किया। अब तक भी गहलोत और पायलट मसले पर हाईकमान की ओर से कोई स्पष्टता नहीं दी गई है।

कांग्रेस नहीं कर रही राजस्थान में स्थितियां साफ

कांग्रेस के वरिष्ठ और केंद्रीय स्तर के नेता लगातार गहलोत और पायलट दोनों को जरूरी बताते हुए बयान देते आ रहे हैं। मगर अब तक किसी भी खेमे के पक्ष या विपक्ष में यह स्थिति साफ नहीं हुई है कि अशोक गहलोत 2023 के अंत तक सीएम बने रहेंगे या चुनाव से पहले पायलट को सीएम बनाया जा सकता है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस असमंजस के हालातों में ही खुद को सबसे बेहतर स्थिति में देख रही है।

नेताओं-कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन

कांग्रेस में ऊपरी स्तर पर खींचतान और असमंजस की स्थिति का असर निचले स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। चुनावी साल में टिकट मांगने से लेकर अन्य जिम्मेदारियों को लेकर नेता असमंजस में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कार्यकर्ताओं को अब भी ऐसा लगता है कि सीएम बदल सकता है। वहीं अगर सीएम नहीं बदलता है तो प्रदेशाध्यक्ष या कैम्पेनिंग कमेटी के चेयरमैन का पद पायलट खेमे के पास जा सकता है। ऐसे में कार्यकर्ता चुनाव को लेकर ग्राउंड पर अपना अप्रोच तय नहीं कर पा रहा है।

बीजेपी में संगठन और सीएम चेहरे पर असंतोष कायम

इसी तरह बीजेपी में भी नेतृत्व को लेकर स्थितियां साफ नहीं होने से निचले स्तर पर कार्यकर्ता अपने माइंडसेट को लेकर क्लीयर नहीं हो पा रहा है। आगामी चुनाव को देखते हुए बीजेपी में सीएम के चेहरे को लेकर पहले से ही काफी विवाद चला आ रहा है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया सहित कई दावेदार हैं। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि बीजेपी बगैर चेहरे के मैदान में उतरेगी।

प्रदेशाध्यक्ष को लेकर भी स्थिति साफ नहीं

सीएम के साथ-साथ बीजेपी में अब प्रदेश के मुखिया को लेकर भी स्थिति साफ नहीं है। प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कार्यकाल दिसम्बर में पूरा हो गया। उसके बावजूद ना तो उन्हें एक्सटेंशन दिया गया है, ना ही प्रदेशाध्यक्ष के लिए चुनाव की कोई प्रक्रिया शुरू हुई है। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर बीजेपी का खेमा भी स्पष्ट नहीं है। हालांकि माना जा रहा है कि इस महीने के अंत तक बीजेपी में इसे लेकर स्थितियां साफ हो सकती हैं।

जनाक्रोश पर दिखा असर, अब भी अनिश्चितता

बीजेपी में इस अनिश्चितता का असर ग्राउंड पर देखने को मिलता है। इस वजह से अंदरूनी स्तर पर खेमेबाजी बीजेपी में हावी है। हाल ही में जनाक्रोश अभियान में भी यही देखने को मिला। शुरुआत में रथयात्राओं में भीड़ नहीं आई। उसके बाद जनसभाओं में भी ऐसा ही कुछ देखा गया। संगठन ने इसकी रिपोर्ट भी मांगी। बीजेपी के नेताओं का कहना है कि आज हर व्यक्ति केंद्रीय संगठन से स्पष्टता चाह रहा है। ताकि उसे पता हो कि किसके नेतृत्व में उसे काम करना है।

कांग्रेस में पिछले दोनों चुनाव में नहीं रही ऐसी स्थिति

कांग्रेस की बात करें तो पिछले दोनों चुनावों में ऐसा विवाद नहीं था। 2018 विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट प्रदेशाध्यक्ष थे। वे 2014 से अध्यक्ष थे और यह तय था कि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। इसी तरह 2013 में चुनाव के दौरान डॉ. चंद्रभान अध्यक्ष थे। वे 2011 से अध्यक्ष थे। ऐसे में तब भी कन्फ्यूजन नहीं था। इसी तरह 2013 के चुनावी वर्ष में सीएम की कुर्सी को लेकर कोई लड़ाई नहीं थी। तब भी सीएम अशोक गहलोत ही थे।

बीजेपी में सीएम चेहरे की नहीं रही लड़ाई

बीजेपी की बात करें तो 2018 और 2013 में सीएम कैंडिडेट के तौर पर वसुंधरा राजे ही चेहरा थीं। चेहरे को लेकर बीजेपी में आज जैसी कोई लड़ाई नहीं थी। 2013 चुनाव से पहले अरुण चतुर्वेदी की जगह वसुंधरा राजे को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद स्थितियां तय थीं कि राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा और सीएम वही होंगी।

प्रदेशाध्यक्ष को लेकर हुआ था विवाद

हालांकि 2018 में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर बीजेपी में विवाद हुआ था। तब लगभग ढाई महीने तक नया अध्यक्ष नहीं चुना गया था। अशोक परनामी का कार्यकाल खत्म होने के बाद केंद्रीय नेतृत्व गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहता था। मगर वसुंधरा राजे इसके खिलाफ थीं। आखिरकार मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। उनके नेतृत्व में ही 2018 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव लड़ा गया।



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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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