हरियाणा स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति (VC) कपिल देव नहीं होंगे। CM मनोहर लाल ने गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की मांग को ठुकरा दिया है। CM ने रिटायर्ड IPS सुरजीत सिंह देसवाल को यह जिम्मेदारी दे दी है। 2019 में खेल मंत्री रहते हुए अनिल विज ने पूर्व क्रिकेटर कपिल देव को यूनिवर्सिटी का वीसी बनाए जाने की घोषणा की थी।
इससे पहले बॉन्ड पॉलिसी लागू करने को एक साल टालने की स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की मांग भी CM ने नहीं मानी थी।
3 वर्ष होगा नए वीसी का कार्यकाल
हरियाणा सरकार के अधिनियम की धारा 42 (ए) के अनुसार पहले कुलपति की नियुक्ति में राज्य सरकार द्वारा कुछ शर्तें भी रखी गई हैं। इन शर्तों में वीसी के कार्यकाल की अवधि को भी तय किया गया है। स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की वीसी की नियुक्ति का कार्यकाल 3 वर्ष का रहेगा। हालांकि इसके बाद यह सरकार तय करेगी कि उसका कार्यकाल बढ़ाया जाए या नहीं।
NSG के महानिदेशक रह चुके देसवाल
पूर्व IPS सुरजीत देसवाल राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के महानिदेशक रह चुके हैं। 2021 में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के महानिदेशक रहते हुए वह सेवानिवृत्त हुए। केंद्र सरकार के नजदीकी कहे जाने वाले देसवाल को हरियाणा सरकार ने खेल विश्वविद्यालय के हरियाणा अधिनियम संक्रमणकालीन प्रावधानों के तहत नियुक्ति की है।
स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के वीसी देसवाल ने स्नातक की पढ़ाई पानीपत और एलएलबी की डिग्री कुरुक्षेत्र से ली है। इसके बाद उनका चयन IPS के लिए हो गया। इस दौरान उन्होंने हरियाणा के कैथल, करनाल, भिवानी, फतेहाबाद, करनाल में पुलिस अधीक्षक के पद पर काम किया। 2001 में उन्हें पुलिस पदक और 2012 में राष्ट्रपति पदक उन्हें मिल चुका है।
1994 में जॉइन की CBI
देसवाल ने 1994 में केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ज्वाइन कर ली। फिर ऑल इंडिया एंटी करप्शन यूनिट में चार साल तक पुलिस अधीक्षक के तौर पर काम किया। इसके बाद उप महानिरीक्षक और महानिरीक्षक पद पर भी तैनात रहे। उन्होंने महानिरीक्षक के तौर पर हरियाणा के अंबाला और रोहतक जैसी रेंज में भी काम किया।
प्रदेश सरकार ने खेलकूद विवि विधेयक-2019 को अगस्त महीने में सदन में पारित कराया था। इसके बाद क्रिकेटर कपिल देव को सितंबर 2019 में कुलाधिपति लगा दिया गया। लेकिन, राष्ट्रपति ने विधेयक के अनेक प्रावधानों पर आपत्ति लगाते हुए इसे वापस लौटा दिया। जिस पर सरकार ने इसे वापस ले लिया और मार्च 2021 में फिर विधानसभा में लाई। लेकिन, विपक्ष की जायज आपत्तियों के कारण मुख्यमंत्री मनोहर लाल इसे प्रवर समिति को भेजने पर राजी हो गए। उन्होंने बहुमत के बल पर इसे पारित नहीं कराया। विधेयक पर पेंच फंसने के कारण कपिल देव ने कुलाधिपति पद पर ज्वाइन नहीं किया था।