रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की.ब्याज एफ़डी पर नहीं बढ़ेगा तो लोग बैंकों में पैसा जमा क्यों करेंगे

रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की.ब्याज एफ़डी पर नहीं बढ़ेगा तो लोग बैंकों में पैसा जमा क्यों करेंगे

हमारे बैंकों का बुरा हाल है। उनका बेलेंस कहीं खो गया है। इम्बेलेंस हो चुके हैं बेचारे। कभी कोई माल्या उन्हें लूट ले गया। कभी कोई नीरव मोदी। क़र्ज़ ले-ले कर भाई लोगों ने कई बैंकों की हालत उन नहाती हुई गोपियों जैसी कर दी जिनके कपड़े लेकर कृष्णजी पेड़ पर चढ़ जाते थे।

ख़ैर, ताज़ा मामला यह है कि इन बैंकों के पास क़र्ज़ की माँग तो तेज़ी से बढ़ रही है लेकिन इसके मुक़ाबले जमा राशि बहुत कम हो रही है। रिज़र्व बैंक की ट्रैण्ड एण्ड प्रोग्रेस रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों में क़र्ज़ की माँग में तो 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है लेकिन जमा पर यह बढ़ोतरी मात्र दस प्रतिशत ही रह गई है। अब सवाल यह है कि जमा कम होगा या उसकी रफ़्तार कम हो जाएगी तो क़र्ज़ देने की रफ़्तार बढ़ेगी कैसे पैसा आएगा कहाँ से बैलेंस आख़िर कैसे मैनेज होगा

दरअसल, हर तिमाही में रिज़र्व बैंक समीक्षा करता है। ब्याज दर बढ़ोतरी के उपाय जब किए जाते हैं तो तमाम बैंक क़र्ज़ पर ब्याज तो तुरंत बढ़ा देते हैं। यह बढ़ोतरी ज़्यादा भी होती है, लेकिन जब हर तरह के जमा पर ब्याज बढ़ोतरी की बारी आती है तो जान बूझकर लेटलतीफ़ी की जाती है। रिज़र्व बैंक ही पाँच बार में ब्याज दरों में सवा दो प्रतिशत की ब्याज वृद्धि कर चुका है, लेकिन बैंकों ने जमा पर ब्याज इसका आधा भी नहीं बढ़ाया। क्यों इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अब ऐसे माहौल में कोई अपना पैसा बैंक में जमा करने के लिए तीव्रता से लालायित क्यों होगा भला

मौजूदा रिपोर्ट में रिज़र्व बैंक ने साफ़ संकेत दिए हैं कि जमा को आकर्षित करना है तो एफ़डी पर ब्याज दर में बढ़ोतरी के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं हो सकता। सही भी है, इस हाथ ले, उस हाथ दे। जैसा देंगे, वैसा ही पाएँगे। ठीक है जमा पर ब्याज कम और क़र्ज़ पर ज़्यादा होता है, क्योंकि क़र्ज़ देने में एक तरह की रिस्क शामिल होती है।

लेकिन जमा पर ब्याज इतना कम। लगभग आधा। दरअसल, हुआ यूँ कि पहले बैंक ही चतुर हुआ करते थे। अब लोग या जमा कर्ता भी चतुर हो चुके हैं। वे अपना पैसा वहाँ लगा रहे हैं जहां से ज़्यादा से ज़्यादा रिटर्न मिल सके। यही वजह है कि बैंकों में जमा की रफ़्तार क़र्ज़ की रफ़्तार से काफ़ी धीमी पड़ गई है। ऊपर से इनके डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड की शिकायतों का अंबार लगा रहता है, सो अलग!

बैंक कहते ज़रूर हैं कि वे इस तरह की शिकायतों का निदान तुरंत करते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोग परेशान होते रहते हैं और उनकी शिकायत पर जब तक बैंकों को तरस आता है, तब तक क्रेडिट कार्ड का ब्याज दुगना हो जाता है। हाँ, क्रेडिट कार्ड के ऑफ़र वाले फ़ोन की घंटी लगभग हर व्यक्ति के पास दिन में दो - चार बार बजे बिना मानती नहीं है।

लापरवाही की तो हद ही है। रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2022-23 के शुरुआती छह महीनों में ही बैंक धोखाधड़ी के 5406 मामलों में 19,485 करोड़ रुपए डूब चुके हैं।


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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