नयी दिल्ली: तटीय शहर पोरबंदर के पास स्थित और गिर राष्ट्रीय उद्यान से 100 किलोमीटर दूर गुजरात के बरदा वन्यजीव अभयारण्य को एशियाई शेरों के संभावित दूसरे घर के रूप में पहचाना गया है। कम आनुवांशिक विविधता के कारण इस प्रजाति पर महामारियों के कारण विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसके मद्देनजर गुजरात के भीतर और राज्य के बाहर एशियाई शेरों के लिए एक पुनर्वास स्थल खोजने के 1990 के दशक से प्रयास किए जा रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने सरकार को 2013 में छह महीने के भीतर एशियाई शेरों को गुजरात से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। उसने कूनो में अफ्रीकी चीता लाने के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया था।
शीर्ष अदालत द्वारा जनवरी 2020 में प्रयोगात्मक आधार पर भारत में अफ्रीकी चीतों को लाने की अनुमति दिए जाने के बाद नामीबिया से आठ चीतों को कूनो में लाया गया है, लेकिन शेरों का स्थानांतरण अब भी लंबित है। केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने सोमवार को लोकसभा को बताया कि गुजरात स्थित बरदा वन्यजीव अभयारण्य को भारतीय वन्यजीव संस्थान ने एक ऐसे संभावित स्थल के रूप में पहचाना है, जहां 40 शेरों को बरदा-आलेच पहाड़ियों और तटीय जंगलों के बड़े परिदृश्य में समायोजित किया जा सकता है। उन्होंने कांग्रेस सांसद डी के सुरेश के एक सवाल के जवाब में यह कहा।
बहरहाल, विशेषज्ञों का कहना है कि कि कई कारणों से बरदा एशियाई शेरों के लिए एक आदर्श आवास नहीं है। वन्यजीव विशेषज्ञ एवं समन्वयक रवि चेलम ने कहा, बरदा कूनो का स्थान नहीं ले सकता, क्योंकि यह गिर से बमुश्किल 100 किलोमीटर की दूरी पर है। उन्होंने कहा कि यदि कोई चक्रवात सौराष्ट्र से टकराता है, तो इससे बरदा के भी प्रभावित करने की आशंका है। उन्होंने कहा कि संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए सौ किलोमीटर की दूरी काफी नहीं है।