दिग्गज गहलोत के रास्ते में युवा और एनर्जेटिक पायलट; आलाकमान की उलझन- किसकी मानें?

दिग्गज गहलोत के रास्ते में युवा और एनर्जेटिक पायलट; आलाकमान की उलझन- किसकी मानें?

राजस्थान की राजनीति में इससे पहले कभी भी ऐसा दौर नहीं आया जब लगातार 4 साल से दो दिग्गज नेताओं की लड़ाई जारी है, वो भी बिना किसी हार-जीत के। एक नेता जो 72 साल की उम्र पाए दिग्गज हैं। वे तीन-तीन बार सीएम बन चुके हैं। उनके पूरे 50 साल के पॉलिटिकल कॅरियर में कभी कोई नेता उनका रास्ता रोक कर खड़ा नहीं हो सका।

लेकिन दूसरी तरफ है 45 साल का एक ऐसा युवा नेता जो अब तक सीएम तो नहीं बन सका, लेकिन देश भर में मशहूर है अपनी एनर्जेटिक छवि के लिए। पिछले 18 साल के पॉलिटिकल कॅरियर में इस पायलट की उड़ान दिग्गज नेता के सर के ऊपर जाने को है। दोनों एक-दूसरे का रास्ता रोक कर खड़े हैं और एक ही पार्टी एक ही सरकार के बीच दोनों गुत्थमगुत्था हैं। एक सत्ता में बने रहने के लिए दूसरा सत्ता को हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं।

हम बात कर रहे हैं सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की। सीएम गहलोत ने दो दिन पहले पायलट को गद्दार बताकर जबरदस्त हमला बोला है, वहीं पायलट ने नपे-तुले सधे हुए शब्दों में इस हमले का जवाब दिया है। दोनों के बीच उम्र और अनुभव का बहुत बड़ा गैप है, फिर भी एक-दूसरे के जबरदस्त विरोधी हैं।

पायलट कोई मौका नहीं छोड़ते जब वो यह नहीं कहते हों कि राजस्थान में गहलोत के मुख्यमंत्री रहते दो बार सत्ता रीपीट नहीं हुई है, वहीं गहलोत भी दोहराते रहते हैं कि पायलट ने प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए भाजपा के साथ साजिश करके अपनी ही पार्टी की सरकार गिराने की कोशिश की।

अब दोनों की यह लड़ाई कहां जाएगी ? कांग्रेस का अगले चुनावों में क्या हाल होगा ? क्या कांग्रेस राजस्थान में एक बार फिर टूटेगी ? क्या सरकार रीपीट नहीं होगी ? यह ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब आलाकमान को देना चाहिए, पर वो अब तक दे नहीं पाया है।

गहलोत पिछले 42 सालों में रहे विजेता, इस बार लगातार उलझन में

गहलोत आज से 42 साल पहले 1980 में पहली बार सांसद बने, तब पायलट की उम्र केवल 5 ‌वर्ष रही होगी। गहलोत सांसद बनते ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री बने। उन्होंने उसके बाद से अब तक कांग्रेस के भीतर किसी राजनेता से राजस्थान या केन्द्र में मात नहीं खाई।

जबकि यह वह दौर था, जब राजस्थान में परसराम मदेरणा, शीशराम ओला, नटवर सिंह, बलराम जाखड़, नवलकिशोर शर्मा, राजेश पायलट, शिवरचरण माथुर, हरिदेव जोशी जैसे दिग्गज राजनेता सक्रिय थे।

गहलोत 1985 में फिर सांसद बने और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट में मंत्री बने। इसके बाद वे 1990 में फिर सांसद बने और तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की कैबिनेट में फिर मंत्री बने। उस वक्त वे राजस्थान के अकेले नेता थे, जो ऐसी सफलताएं पा रहे थे। कहीं कोई राजनेता उन्हें चुनौती नहीं दे पा रहा था, क्योंकि गांधी परिवार का वरदहस्त उन्हें हासिल था।

इसके बाद वे बिना विधायक बने राजस्थान में शिवचरण माथुर की सरकार में गृह मंत्री भी रहे। बाद में 1998 में परसराम मदेरणा, शिवरचरण माथुर, नवलकिशोर शर्मा, शीशराम ओला, राजेश पायलट को दरकिनार कर पहली बार महज 47 साल की उम्र में सीएम भी बने।

फिर यही कहानी डॉ. सी. पी. जोशी को पछाड़ कर 2008 में दूसरी बार सीएम बनने पर भी जारी रही। तीसरी बार वे सीएम तो बन गए 2018 में, लेकिन तब से अब तक सचिन पायलट के साथ लगातार संघर्ष में उलझे हुए हैं। बीते 42 सालों में जैसी टक्कर उन्हें सचिन पायलट ने दी है, वैसी टक्कर पहले किसी दिग्गज ने नहीं दी।

2009 में पायलट बने गहलोत को टक्कर देने वाले नेता

सचिन पायलट ने जब राजनीति में प्रवेश किया उससे तीन वर्ष पहले उनके पिता पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजेश पायलट का निधन हो चुका था। वे महज 27 वर्ष की आयु में दौसा (राजस्थान) से सांसद बने। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। पायलट राहुल गांधी के मित्रों में गिने जाते थे। उनकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ और सामाजिक-राजनीतिक विषयों की गहरी जानकारी थी। इससे राहुल सदा ही प्रभावित रहे हैं। संसद में पायलट की छवि एक शानदार वक्ता के रूप में लगातार निखरती गई।

फिर 2009 में पायलट अजमेर से सांसद बने और केन्द्र में कांग्रेस सरकार रीपीट हुई। राहुल ने उस वक्त अपने चार युवा मित्रों को मंत्री बनवाया। इनमें से एक पायलट भी थे। पायलट कम्पनी मामलात और टेलिकॉम मंत्रालय में मंत्री बने। उन्होंने उस दौर में अजमेर में एयरपोर्ट और केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनवाया।

केन्द्रीय कैबिनेट में अपनी प्रभावशाली भूमिका के चलते पायलट राहुल गांधी सहित सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को भी प्रभावित कर रहे थे। उनकी शानदार अंग्रेजी और प्रभावशाली पर्सनेलिटी पर गहलोत अक्सर ताने कसते रहे हैं।

21 सीटों को संघर्ष कर 100 में बदलने से पायलट गहलोत के बराबर आ खड़े हुए

जब पायलट 2009 से 2014 के बीच केन्द्र में मंत्री थे, तभी 2013 के दिसंबर में विधानसभा चुनाव हुए और गहलोत के सीएम रहते राजस्थान में कांग्रेस 200 सीटों में से सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाई। ऐसे में राहुल गांधी ने कांंग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष की कमान पायलट को सौंपी।

पायलट ने 2014 का लोकसभा चुनाव तो अजमेर से खुद भी हारा, लेकिन उसके बाद राजस्थान की 2 लोकसभा सीटों और 6 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में दोनों लोकसभा और 4 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव जीते। इसके बाद वे लगातार भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष करते रहे और 2018 में कांग्रेस को 200 में 100 सीटें मिली। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी। यहीं से कांग्रेस आलाकमान की नजरों में सचिन पायलट का कद लगातार बढ़ता चला आ रहा है। पायलट का यही कद है, जो गहलोत का रास्ता रोक रहा है।

दोनों को मिला आलाकमान और गांधी परिवार का आशीर्वाद

गहलोत और पायलट के पॉलिटिकल कॅरियर में एक बात बहुत समान रही। दोनों को ही युवावस्था में आलाकमान और गांधी परिवार का साथ व आशीर्वाद मिला। ऐसा आशीर्वाद प्रदेश के किसी तीसरे नेता को कभी नहीं मिला। इसीलिए दोनों ही 25-30 की उम्र में सांसद और कैबिनेट मंत्री बने। दोनों को ही 34-35 की उम्र में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनने का मौका मिला। गहलोत जहां 47 साल की उम्र में पहली बार सीएम बन गए वहीं पायलट भी 45 की उम्र में ही सीएम बनना चाह रहे हैं।

2018 में पहली बार गहलोत और पायलट हुए आमने-सामने

2018 के दिसंबर में जब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली तो उसका श्रेय पायलट को दिया गया क्योंकि प्रदेशाध्यक्ष वे ही थे और 21 सीटों में सिमट चुकी कांग्रेस को 100 सीटों तक पहुंचाया था। यह पहला अवसर था, जब गहलोत और पायलट एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे। दोनों सीएम बनना चाह रहे थे। आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ने पायलट पर गहलोत को तरजीह देते हुए सीएम बना दिया। पायलट को डिप्टी सीएम बनकर संतोष करना पड़ा। तब से अब तक दोनों एक-दूसरे को चैलेंज दे रहे हैं।

गहलोत ने पहले किसी राजनेता के खिलाफ नहीं बोले नाकारा, निकम्मा और गद्दार जैसे शब्द

गहलोत को उनकी राजनीतिक जिन्दगी में पहली बार किसी राजनेता से ऐसी टक्कर मिली है कि वे पिछले चार साल से सीएम तो हैं, लेकिन उन्हें हमेशा यह खतरा सताता रहा कि कहीं उन्हें सीएम पद से हटाकर कांग्रेस आलाकमान पायलट को सीएम ना बना दें। ऐसी चुनौती उन्हें पहले कभी किसी राजनेता से नहीं मिली। वे तीन बार केन्द्र में मंत्री, तीन बार प्रदेशाध्यक्ष, तीसरी बार सीएम हैं, लेकिन पायलट उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गए हैं।

गहलोत पायलट की अंग्रेजी भाषा व सुंदर व्यक्तित्व तक पर व्यंग्य कर चुके हैं। वे उन्हें नाकारा, निकम्मा कह चुके हैं। अभी दो दिन पहले गद्दार भी कह दिया है। ऐसा जुबानी हमला पहले गहलोत ने कभी किसी पर नहीं किया क्योंकि वे हर प्रतिद्वंद्वी को आसानी से किनारे कर देते थे, लेकिन पायलट किनारे होना तो दूरे ठीक उनके सामने खड़े हुए हैं।

जुलाई 2020 और पायलट की बगावत

जुलाई 2020 में पायलट ने बगावत कर मानेसर (हरियाणा) जाने का फैसला किया। ऐसा कांग्रेस की राजस्थान में किसी सरकार के सामने कभी किसी कांग्रेसी राजनेता ने नहीं किया। उस वक्त अनुशासनहीनता के चलते पायलट को प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम अपने दोनों पद खोने पड़े। आखिरकार आलाकमान ने उन्हें पार्टी में फिर से लिया, लेकिन अब तक उनकी ताजपोशी किसी भी पद पर नहीं हुई है।

25 सितंबर 2022 को पायलट के खिलाफ इस्तीफों की बगावत

25 सितंबर 2022 को एक बार फिर आलाकमान की ओर से भेजे पर्यवेक्षकों ने पायलट को सीएम बनाने की कोशिश की, लेकिन गहलोत समर्थक 92 विधायकों ने एक साथ इस्तीफे देकर बगावत कर दी। सरकार रिपीट न होना और सरकार रिपीट करवाने के दावे के बीच अब दोनों नेताओं की यह लड़ाई बढ़ती जा रही है।

पायलट और उनके समर्थक अक्सर कहते रहे हैं कि गहलोत के सीएम रहते दो बार सरकार न केवल रिपीट नहीं हुई, बल्कि कांग्रेस की चुनावों दुर्गति हुई है। पायलट का दावा है कि अगर सरकार रिपीट करनी है, तो बदलाव जरूरी है। वहीं गहलोत हर बार की तरह इस बार भी दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार रिपीट होगी।

गहलोत और पायलट दोनों जरूरी पर ज्यादा जरूरी कौन? तय नहीं कर पा रहा हाईकमान

कांग्रेस के मीडिया सेल के चेयरमैन जयराम रमेश का कहना है कि गहलोत सीनियर और अनुभवी हैं वहीं पायलट एनर्जेटिक व करिश्माई नेता हैं। जयराम का यह बयान कांग्रेस आलाकमान के कनफ्यूजन को भी जाहिर कर रहा है। इस लड़ाई को खत्म करने के लिए दोनों जरूरी है में से कौन ज्यादा जरूरी का चयन हाईकमान कर नहीं पा रहा। आम कांग्रेस कार्यकर्ता भी इस बात को जानता है कि यह लड़ाई जल्दी खत्म नहीं हुई तो राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान में आने से लेकर अगले विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस को नुकसान ही नुकसान है।

गहलोत बोले- आगे बढ़ने, अपमान का घूंट पीना सीखें:कहा- चुने हुए विधायकों की होर्स ट्रैडिंग का नया मॉडल लाए हैं मोदी

सीएम अशोक गहलोत ने कहा है कि जिसे आगे बढ़ना है, उसे अपमान का घूंट पीना सीखना चाहिए। डॉ. अंबेडकर किस तरह अपमान का घूंट पी पीकर आगे बढ़े, यह सब जानते हैं। अंबेडकर अपमान का घूंट नहीं पीते और उलझ जाते तो आज उनका जो नाम देश दुनिया में है वह नहीं होता। महात्मा गांधी ने अपमान का घूंट पीया, साउथ अफ्रीका में फस्ट क्लास का टिकट होते हुए भी जब उन्हें ट्रेन से बाहर फैंक दिया। इससे बड़ा अपमान क्या होगा


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yhfee@chitthi.in, 10 June 2023

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