बिहार में कुर्मी-यादव की जोड़ी क्‍या गुल खिलाएगी? UP में कितनी है इसकी राजनीतिक ताकत?

बिहार में कुर्मी-यादव की जोड़ी क्‍या गुल खिलाएगी? UP में कितनी है इसकी राजनीतिक ताकत?

नई दिल्‍ली बिहार में नीतीश-लालू की दोस्ती जहां बीजेपी को मुंह चिढ़ा रही है वहीं दूसरी तरफ ओबीसी के तहत आने वाले कुर्मी समुदाय की पूछ बढ़ रही है जबसे नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ फिर से लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया है नीतीश कुमार जिस कुर्मी समुदाय से आते हैं वह बिहार की राजनीति के केंद्र में आता दिख रहा है दिलचस्प है कि यादव और कुर्मी के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन बताया जा रहा है कि बीते कुछ हफ्तों में यादव प्रतिद्वंद्वी कुर्मी समुदाय को गले लगाने को आतुर हैं यह भाईचारा बीजेपी को नई जातीय गठबंधन बनाने के लिए मजबूर कर दिया है


कुर्मी समुदाय की अधिकांश आबादी किसान हैं जिनके लिए कहा जाता है कि वो हर विकासशील योजना का लाभ उठाते हैं इसलिए प्रगतिशील किसान कहलाते हैं कुर्मी कई उपनामों से जाने जाते हैं जैसे सिंह सिन्हा महतो बघेल पाटीदार कुमार मोहन्ती कनौजिया आदि हालांकि ये उपनाम अन्य समुदाय भी इस्तेमाल करते हैं इसलिए कई बार कुर्मी कोई उपनाम लगाते ही नहीं हैं सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इसी समुदाय से आते हैं इस समुदाय के लोग यूपी झारखंड गोवा कर्नाटक और कुछ और बड़े राज्यों में है


अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग


जहां तक आरक्षण की बात है तो केंद्र और राज्य दोनों ही सूची में यह समुदाय ओबीसी श्रेणी में आता है हालांकि पश्चिम बंगाल ओडिशा और झारखंड में इनकी मांग है कि इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए वहीं गुजरात में पटेल (जो कि कुर्मी समुदाय के हैं) को जनरल श्रेणी में रखा गया है अब गुजरात के पटेल भी ओबीसी का दर्जा चाहते हैं द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि सुरक्षाबल और पुलिस में यादवों की संख्या ज़्यादा है वहीं यूपी और बिहार में कुर्मी की मेडिकल कॉलेज विश्वविद्यालय और सिविल सेवा में ज़्यादा मौजूदगी है


मजबूत राजनीतिक ताकत


बिहार की बात करें तो कुर्मी एक मज़बूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरा है आज़ादी से पहले बिहार में त्रिवेनी संघ नाम की राजनीतिक पार्टी बनी थी जिसका गठन जगदेव प्रसाद यादव शिव पूजन सिंह (कुर्मी) और यदुनंदन प्रसाद मेहता (कुशवाहा) ने मिलकर किया था वहीं आगे के वर्षों में बिहार और झारखंड को बड़े कुर्मी नेता मिले जैसे पूर्व सांसद और राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के बिनोद बेहारी महतो और सतीश प्रसाद सिंह सतीश प्रसाद सिंह साल 1968 में 4 दिन के लिए पहले कुर्मी मुख्यमंत्री बने थे


UP में क्‍या है स्थिति?


यूपी में कोई कुर्मी अब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठ पाया लेकिन कई सालों तक बेनी प्रसाद वर्मा को समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के बाद नंबर दो का दर्जा दिया जाता रहा इनके अलावा 60 और 70 के दशक में जयराम वर्मा जैसे कुर्मी नेता यूपी में अहम रोल निभाते दिखे कुर्मी नेता सोनेलाल पटेल ने भी बीएसपी छोड़ अपना दल का गठन किया जिसके दो हिस्से हो चुके हैं दोनों धड़े का नेतृत्व उनकी दो बेटियां कर रही हैं अनुप्रिया पटेल केंद्रीय मंत्री हैं और पल्लवी पटेल सपा की विधायक हैं जो कि यूपी में नीतीश कुमार के साथ संबंध मज़बूत करना चाहती हैं


नीतीश-लालू का रिश्‍ता


नीतीश और लालू प्रसाद यादव का कभी हां कभी न वाला रिश्ता जगज़ाहिर है इनकी दोस्ती को अंग्रेज़ी शब्द friends with benefits से समझा जा सकता है इसका अर्थ है वो नफा-नुकसान वाली दोस्ती जिसके बारे में दोनों दोस्त अवगत होते हैं राजनीति में इस तरह की दोस्ती को सहज रूप से स्वीकार किया जा चुका है वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में यादव और कुर्मी की यह दोस्‍ती यदि सफल रहे तो इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं

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