नई दिल्ली. कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर चल रहे विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. मामले की सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत की पीठ ने धर्मनिरपेक्षता को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. पीठ ने कहा कि भारत हमेशा से एक सेक्युलर देश रहा है. भारत उस वक्त से भी पहले से धर्मनिरपेक्ष रहा है जब संविधान निर्माताओं ने सेक्युलर शब्द को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ने पर विचार नहीं किया था. प्रस्तावना 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था जब भारत एक गणराज्य के रूप में उभरा था.
गौरतलब है कि संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर शब्द को शामिल नहीं किया गया था. संविधान के 42वें संशोधन (1976) के जरिये सेक्युलर शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा गया था. उस वक्त इंदिरा गांधी की सरकार थी. दरअसल कर्नाटक हिजाब विवाद मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने प्रस्तावना एवं अनुच्छेद 51A का उल्लेख करते हुए धर्मनिरपेक्षता और विभिन्न समुदायों के बीच भ्रातृत्व बढ़ाने की संवैधानिक व्यवस्था का उल्लेख किया था. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि प्रस्तावना में जब सेक्युलर शब्द नहीं था, तब भी हमारा देश धर्मनिरपेक्ष था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आगे कहा प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द जोड़ देने मात्र से ही हमलोग धर्मनरिपेक्ष नहीं हो गए. हुजेफा अहमदी ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि धर्मनिरपेक्ष और कल्याणकारी राज्य होने के नाते किसी भी सरकार की प्राथमिकता मुस्लिम महिला के लिए शिक्षा की उचित व्यवस्था करना होनी चाहिए. हिजाब पर प्रतिबंध लगाकर उनके शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए.
दरअसल दक्षिणी राज्य कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में इन दिनों हिजाब का जमकर विरोध हो रहा है. कुछ छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने के बाद हिंदू छात्रों ने भी भगवा गमछा पहनकर शैक्षणिक संस्थानों में आना शुरू कर दिया था जिससे दोनों ओर से तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी. मामला बढ़ने के बाद यह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शीर्ष अदालत में इस बात को लेकर सुनवाई हो रही है कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहना जाए या नहीं.
