2025 तक देश होगा टीबी से मुक्त! मरीजों को फूड बास्केट परिजनों को रोजगार की ट्रेनिंग

2025 तक देश होगा टीबी से मुक्त! मरीजों को फूड बास्केट परिजनों को रोजगार की ट्रेनिंग

नई दिल्ली. 2025 तक तपेदिक (टीबी) को खत्म करने के लक्ष्य की ओर काम करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय शुक्रवार को प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान शुरू कर रहा है. जिसमें सामुदायिक सपोर्ट से रोगियों के लिए पोषण अतिरिक्त इलाज में मदद और उनके परिवार के लोगों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण का प्रबंध करना शामिल होगा. जबकि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में इसके लिए नि-क्षय मित्र नामक पहल पहले से ही चल रही है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शुक्रवार को औपचारिक रूप से इसका शुभारंभ करेंगी.


इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक इस योजना के तहत व्यक्ति गैर सरकारी संगठन और कॉरपोरेट 1-3 साल के लिए समर्थन देकर टीबी रोगियों को गोद ले सकते हैं.  इस पहल में शामिल होने के लिए उन्हें साइट https://communitysupport.nikshay.in पर पंजीकरण करना होगा. जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों ब्लॉक जिलों और राज्यों के अनुसार वर्गीकृत टीबी रोगियों की एक सूची है. प्रायोजक अपनी क्षमता के अनुसार रोगियों की संख्या को चुन सकते हैं.


केंद्रीय टीबी मंडल से प्रायोजक को उनके जिले के टीबी अधिकारी के विवरण के साथ एक मेल भेजा जाएगा. जबकि टीबी अधिकारी को प्रायोजक के बारे में सूचित किया जाएगा. अधिकारियों से प्रायोजकों को मरीजों का विवरण मिलेगा बशर्ते कि वे उनके नाम न छापें. स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के सहयोग से मासिक फूड बास्केट के लिए दो विकल्प तैयार किए हैं. वयस्कों के लिए शाकाहारी भोजन की बास्केट में 3 किलो अनाज या बाजरा 1.5 किलो दाल 250 ग्राम वनस्पति तेल और 1 किलो दूध पाउडर या 6 लीटर दूध या 1 किलो मूंगफली होना चाहिए. मांसाहारी विकल्प में इसके अलावा 30 अंडे होंगे.


बच्चों के लिए फूड बास्केट में 2 किलो अनाज या बाजरा 1 किलो दाल 150 ग्राम वनस्पति तेल और 750 ग्राम दूध पाउडर या 3.5 लीटर दूध या 0.7 किलो मूंगफली होनी चाहिए. प्रायोजकों को रोगियों को ताजी सब्जियां बीन्स और फलों का सेवन करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भी कहा जाता है. अधिकारियों ने कहा कि हर फूड बास्केट पर लगभग 1000 रुपये खर्च होने की संभावना है. स्थानीय स्तर पर स्वीकार्य भोजन के अनुसार जिला अधिकारियों द्वारा फूड बास्केट को संशोधित किया जाएगा.


इसके अलावा प्रायोजक टीबी रोगी के परिवार के सदस्यों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दे सकते हैं. ज्यादातर टीबी के मरीज कमाने वाले होते हैं और इससे उनके परिवारों पर आर्थिक दबाव पड़ता है. अगर परिवार के किसी सदस्य को व्यवसाय में प्रशिक्षित किया जाता है तो वे कमाई जारी रखने में सक्षम होंगे. भारत में हर साल 20-25 लाख टीबी के मामले सामने आते हैं और लगभग 4 लाख लोग इससे मर जाते हैं. इस समय 13.5 लाख लोगों का टीबी का इलाज चल रहा है. जिनमें से 9.26 लाख पहले ही इस पहल के तहत शामिल होने के लिए सहमति दे चुके हैं.

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