ठीक 75 साल पहले, कश्मीर के शालतेंग इलाके में लड़ी गई एक भीषण लड़ाई ने न केवल श्रीनगर को पाकिस्तानी सेना के हमले से बचाया, बल्कि 1947-48 के पहले भारत-पाक युद्ध का रुख ही बदल दिया। सैन्य इतिहास की किताबों में युद्ध की सबसे निर्णायक लड़ाई के तौर पर शालतेंग की लड़ाई लिपिबद्ध है जिसमें भारतीय सैनिकों और अन्य बहादुरों ने सात नवंबर, 1947 को आक्रमणकारियों से लोहा लिया और दुश्मन का सफाया कर दिया।
काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स किलो के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने पीटीआई-भाषा को बताया, काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स किलो का मुख्यालय आज मोटे तौर पर उस जगह पर है जहां ठीक 75 साल पहले लड़ाई लड़ी गई थी। यह पहले भारत-पाक युद्ध की सबसे निर्णायक लड़ाई थी, और इसने श्रीनगर को बचाया और सचमुच युद्ध का रुख मोड़ दिया। पंद्रह अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बमुश्किल दो महीने बाद, अक्टूबर में लड़ाई से पहले नाटकीय घटनाएं हुई थीं।
भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के एकीकरण पर बातचीत चल रही थी, जब 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान की ओर से कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन रियासत पर हमला किया। दुविधा में फंसे जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को विलय-पत्र पर हस्ताक्षर किए और इसके एक दिन बाद ही भारतीय सेना की 1 सिख रेजिमेंट के सैनिकों को जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तानी सेना से बचाने के लिये डकोटा विमानों से श्रीनगर बडगाम एयरफील्ड के पुराने हवाई क्षेत्र में पहुंचाया गया।
भारतीय सेना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, श्रीनगर हवाई क्षेत्र में भारतीय सेना के उतरने के लगभग दो सप्ताह बाद शालतेंग की लड़ाई लड़ी गई थी। इसमें कहा गया, सात नवंबर को, एक हवाई गश्ती दल ने श्रीनगर शहर के बाहरी इलाके में शालतेंग गांव में कबाइलियों के एक बड़ी संख्या में जुटने की सूचना दी। शहर पर हमले से पहले इस बल को खंदक खोदते हुए देखा गया था।
अधिकारी ने कहा कि सात नवंबर को 1 सिख, 1 कुमाऊं, 4 कुमाऊं और 7 लाइट कैवेलरी के एक स्क्वाड्रन द्वारा अच्छी तरह से समन्वित और निष्पादित ऑपरेशन व रॉयल इंडियन एयर फोर्स अब भारतीय वायुसेना के हमलों ने युद्ध की दिशा को बदल दिया। उन्होंने कहा कि इसमें भारतीय सेना के सैनिक व कश्मीरी नागरिकों ने पाकिस्तान की सेना को खदेड़ने के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी और पांच जनवरी 1949 को युद्धविराम तक उन्हें जम्मू-कश्मीर के अधिकांश हिस्सों से खदेड़ दिया।
भारतीय सेना की वेबसाइट के मुताबिक शालतेंग में दुश्मन के सैकड़ों सैनिक मारे गए और शेष बारामूला की तरफ भाग गए। इस लड़ाई में सैनिकों द्वारा दिखाए गए पराक्रम के सम्मान में बडगाम जिले के सरिफाबाद इलाके में मुख्यालय को शालतेंग गैरिसन कहा जाता है। सेना ने पिछले साल यहां सात नवंबर को विशिष्ट लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया था।